जिला सांख्यिकी पदाधिकारी राजेश पाठक की पांच कविताएं

कोरोना काल में साहित्य की भी खूब रचनाएं रची जा रही हैं. झारखण्ड के कवियों ने भी खूब कविताएं रचीं हैं. इंडियन माइंड उन कवियों का सम्मान करता है और उनकी कविताओं का प्रकाशन कर खुद को गौरवान्वित महसूस करता है.

प्रस्तुत है गिरिडीह में पदस्थापित जिला सांख्यिकी पदाधिकारी राजेश पाठक की पांच कविताएं.

कवि परिचय

राजेश पाठक
जिला सांख्यिकी पदाधिकारी, गिरिडीह

प्रांतीय सचिव– राष्ट्रीय कवि संगम, झारखंड
जन्म: 05.06.1966
शिक्षा: एम. ए.
संप्रति: झारखंड सरकार में कार्यरत
प्रकाशन: विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता एवं लेख प्रकाशित। (प्रभात खबर, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, आवाज, सोच-विचार आदि )
सम्मान: नक्सलवाद पर आधारित स्वलिखित काव्य संग्रह ‘पुकार’ के लिए जिला प्रशासन गिरिडीह, झारखण्ड की ओर से पुरस्कृत। प्रथम सिविल सेवा दिवस के मौके पर गिरिडीह जिलास्तर पर साहित्य सृजन के लिए सम्मानित। स्वच्छ भारत अभियान पर गीत रचना व गायन के लिए जिला प्रशासन की ओर से सम्मानित. प्रतिष्ठित अखबार प्रभात खबर की ओर से 2019 में साहित्य रचना के लिए सम्मानित.

काव्य मंचन: दैनिक जागरण एवं अन्य साहित्यिक समारोहों में काव्य मंचन।
पता: चित्रगुप्त कॉलोनी, गिरिडीह- 815301, झारखंड
मोबाइल: 9470177888, 9113150917
मेल : hellomrpathak@gmail-com

facebook:  https://www.facebook.com/hellomrpathak

 

पांच कविताएं

हारती कोरोना
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यह कलम आज मुंह खोल रही
कुछ दिन चुप थी अब बोल रही
जितना सहना सह जाओ दु:ख
ऐ मित्र! जहां हो वहीं तू रूक
मैं समझ रहा तेरी पीडा़
है मोह तुझे अब क्यों घेरा
मत चिंता अपनी मां की कर
वह घर में है तुझसे बेहतर
वह चाह रही तुम वहीं रहो
हो अगर कष्ट भी, उसे सहो
है अस्थाई यह मंजर
एक दिन होगा यह छू मंतर…

प्रलय का काल
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दिख जाए भी अस्थि पंजर
धरती भी हो जाए बंजर
सब तरफ ही हाहाकार मचे
घर बाहर भी कुछ नहीं बचे
जब रक्त नहीं दौडे़ रग-रग
स्थावर हो जाता हो जग
चंदन पत्थर पर नहीं घिसे
तब समझ प्रलय का काल इसे
फिर भी हिम्मत ना कभी हार
खुल जाएगा सब बंद द्वार
पीछे ना करना कभी कदम
जो रहा वीर जीता हरदम!

ताला सब खुल जाएगा
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सूरज अब देखो प्रखर हुआ
दुश्मन के उपर असर हुआ
है सूक्ष्म जीव पर घाव बडा़
दुश्मन का जैसे दाव बडा़
पर नहीं हार हम मान रहे
नस-नस उसकी पहचान रहे
हिम्मत कर घर में डटे रहें
पर नहीं किसी से सटे रहें
कुछ दिन में वह धुल जाएगा
फिर ताला सब खुल जाएगा…

लक्ष्मण रेखा मत पार करो…
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यह वक्त बडा़ है नाजुक पल
हो उष्म मगर तू नहीं उबल
है वक्त नहीं चिल्लाने का
कुछ कर के अब दिखलाने का
सड़कों पे कोई ना उतरे
है वक्त अभी भी जा सुधरे
लक्ष्मण रेखा मत पार करे
कानून यही- सत्कार करे
जब वक्त बुरा आ जाता है
अच्छों को चुरा ले जाता है
कर सही वक्त का इंतजार
उठने दो जितना उठे ज्वार…

है युगांत हो जाने का गुमसुम क्रंदन
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मानव मानव से इतना क्यों दूर हुआ है
शीशे से टकरा पत्थर क्यों चूर हुआ है
क्यों मुंह रहते उसमें कोई आवाज नहीं है
क्यों पक्षी होकर भी कोई परवाज नहीं है
क्यों गीतों पर सज पाती कोई साज नहीं है
क्यों शर्म हया अभिशप्त हुई औ लाज नहीं है
है परिवर्तन या नव युग का यह अभिनंदन
या है युगांत हो जाने का गुमसुम क्रंदन !

 

धन्यवाद

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