नव झारखंड फाउंडेशन का जनकल्याणकारी अभियान

लॉकडाउन की मार झेल रहे महाराष्ट्र में फंसे झारखंड के हज़ारों गरीबों तक पहुंचे राशन भोजन

निरंजन भारती

मुंबई, विशेष संवाददाता : कोरोना वायरस की वजह से पूरी दुनिया ठप्प हो गई है। हालांकि इस वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए सरकार ने तीन मई तक लॉकडाउन लगा दिया है। इस  वजह से सब लोग अपने घरों में कैद हैं। मुम्बई में फंसे झारखंड के गरीब मजदूर लोगों को खाने-पीने की बड़ी दिक्कत हो गई है। कामकाज बंद होने से कमाई बंद हो गई है, जिसके चलते उनके पास खाने के लिए भी पैसे नहीं हैं।

महाराष्ट्र में फंसे सैकड़ों झारखंडी गरीब मजदूर ऐसे भी हैं जो सड़कों पर रात बिताने को मजबूर हैं। ये वो गरीब मजदूर हैं जिनके पास रहने के लिए घर नहीं है। लॉकडाउन में सबसे ज्यादा असर गरीब लोगों पर ही पड़ा है। ये तमाम गरीब मजदूर ऐसे हैं, जिनके पास खाने पीने का इंतजाम नहीं है। ऐसे लोगों के लिए नव झारखंड फाउंडेशन मसीहा से कम नहीं है।

फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष किशोरी राणा ने बताया कि महाराष्ट्र मुम्बई में लॉकडाउन की मार झेल रहे झारखंडी गरीब मजदूर जरूरतमंदों की मदद में जुटा है। फाउंडेशन के नेतृत्व में प्रतिदिन दो सौ परिवारों तक राशन और जरूरत की चीजें गरीबों में वितरित की जा रही है । अब तक संगठन के द्वारा 8763 ( आठ हजार सात सौ तिरसठ ) परिवारों को राशन उपलब्ध कराया गया जा चुका और यह लॉक डाउन तक जारी रहेगा ।

सरकार गरीब मजदूरों की समस्याओं को गंभीरता पूर्वक समझे : किशोरी राणा ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा हेमंत सरकार राज्य से बाहर फंसे श्रमिकों की अनदेखी कर रही है । राज्य से बाहर फंसे गरीब मजदूरों के सामने लॉक डाउन ने बहुत बड़ी समस्या खड़ी कर दी है । श्रमिकों के सामने भुखमरी की संकट उत्पन्न हो गई है। ऐसे में हेमंत सोरेन और उनकी टीम राज्य से बाहर फंसे गरीब वंचित श्रमिकों की समस्याओं को गंभीरता पूर्वक समझे ।

मैं राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को बताना चाहूंगा कि झारखंड के श्रमिक मुम्बई के झोपड़ियों में रह कर अपना जीवन यापन करते हैं। जिस इलाकों में ये मजदूर रहते है उसमें धारावी, चेंबूर गोवंडी शिवजी नगर कोलीवड़ा, वडाला आदि। इन झोपड़पट्टी वाले इलाकों में  सोशल डिस्टेंस बनाए रखना मतलब दांतों तले चना चबाना है यानी असंभव है। इन झोपड़ियों की साइज केवल दस बाय दस ( 10×10) की होती है और इतना ही जगह में दस से पंद्रह लोग रहते हैं। साथ ही इन महानगर पालिका की अनुमति लेकर इसी छोटे छोटे मकानों के ऊपर दो- दो मंजिला बनाकर दस बारह आदमी परिवार समेत व ग्रुप मे रहते हैैं, ऐसे घरों मे घूमना फिरना भी मुश्किल होता है। इन घरों में निजी टोयलेट नही होने के कारण लोग पब्लिक शौचालय का इस्तेमाल करते हैं। हर गली के अंदर छोटी-छोटी नालियां व गटर होते हैं। गली मे छोटी-छोटी किराने की दुकानें होती है। हर बस्तियों मे टीबी के मरीज होते है, लोग दिहाड़ी मजदूरी करते है, कईयो के पास राशन कार्ड भी नही है और जिस प्रकार से मुंबई मे कोरोना मरीजो की संख्या बढ़ रही है ऐसे में इन बस्तियों में मे कोरोना का संक्रमण फैलता लाजमी है। तो ऐसी स्थिति मे कम्यूनिटी संक्रमण फैलने से इंकार नही किया जा सकता है और स्थित कंट्रोल से बाहर हो सकती है ।

महाराष्ट्र सरकार के द्वारा संक्रमण को रोकने के लिए जो प्रयास है वो निस्संदेह काबिले तारीफ है, परंतु सोचने का समय है कि क्या ऐसी बस्तियो मे ऐसे लाँकडाउन प्रभावी होंगे ?? मुम्बई एक गर्म प्रदेश के नाम से जाना जाता है ऐसे में बढ़ते तापमान से पतरा गर्म होने लगा है। ऐसे में पतरे के घरों मे लोग दरवाजे बंद कर कितने दिनों तक बैठे रह सकते है। जहां टहलना तो दूर ढंग से खड़ा रहना भी मुश्किल होता है, उपर से जेंबे खाली। इसके अलावा जिन पब्लिक शौचालय का इस्तेमाल ये गरीब मजदूर लोग करते हैं वहां अंदर लाईन लगती है, दो दो तीन तीन नंबर पर आदमी खडे होते हैं, ऐसे मे सोशल डिस्टेंस पर सवाल उठना सौ प्रतिशत लाजिमी है, उन शौचालयों मे भी अधिकांश मुंह पर मास्क नही लगाते, कई तो सिर्फ रूमाल लेकर आ जाते हैं, कई तो थूंकते रहते है तो कुछ जोर जोर से खांसते रहते हैं । ऐसे इलाकों मे यदि 2 घंटे बाजार खोल दिया जाए तो बाजार की भीड मे सोशल डिस्टेंस पूरी तरह अर्थ हीन साबित होती है इसके अलावा चेम्बूर , गोवंडी , शिवाजी नगर, धरावी आदि कई बस्तियों में तो पीने की पानी लेने के लिए घंटो नल पर लगाना पड़ता है। ऐसे में अगर कोई संक्रमित व्यक्ति उस भीड़ में आ जाए तो न जाने कितनो को संक्रमण का खतरा हो सकता है और वह चाहकर भी अपने परिवार को संक्रमण से नही बचा सकता है क्योंकि रात का खाना और सोना तो परिवार के साथ ही है. संक्रमण एक घर से दूसरे और एक गली से दूसरी गली मे कब फैलेगा पता ही नहीं चलेगा।

मैं सरकार से आग्रह करूंगा अभी भी वक्त है हमारे पास क्यूंकि ऐसी बस्तियों मे अभी शुरूआती केस सामने आ रहे हैं। इसके पहले की संक्रमण अधिक फैले सरकार मजदूरों को घर वापस लाने के लिए पहल करें । अभी हम संक्रमित व्यक्ति ढूंढने मे लगे हैं, बेहतर होगा हम स्वस्थ लोगों को ढूंढकर उन्हें संक्रमण से बचाए।

यदि संक्रमण फैलता है तो भी लाखों लोगों के इलाज की सुविधा पर संसाधनों पर सरकार को खर्च करना होगा : क्यों न हम स्वस्थ परिवारों को या तो चिन्हित कर सरकारी निगरानी में उनके गांवो तक डाक्टरों की देख रेख मे भेजे और वहां 14 दिन तक कोरेनटाइन में रखे या फिर शहर के पास किसी जंगल मे कैंप बनाकर रखे ताकि यदि संक्रमण फैले तो कुछ लोग तो बच सके और सरकार का भार कम हो, वरना झोपड़पट्टी मे संक्रमण का प्रभाव अत्यधिक हो सकता है। लोगो को सुरक्षित स्थानों पर ले जाकर बचाव ही इसका उपाय है।

मुम्बई में सक्रिय सामाजिक संगठनों को सौ बसों की अनुमति दे सरकार : केंद्र सरकार और राज्य सरकार मुम्बई में सक्रिय झारखंडी सामाजिक संगठनों को कम से कम 100 ( सौ ) बसों की अनुमति दे, जिससे महाराष्ट्र में फंसे लाखों प्रवासी झारखण्डियों को सुरक्षित उनके घर तक पहुंचाने का काम संस्था कर सके।

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