वरिष्ठ साहित्यकार डॉ छोटू प्रसाद ‘चंद्रप्रभ’ की एक कविता और एक लेख

कोरोना काल में साहित्य की भी खूब रचनाएं रची जा रही हैं. झारखण्ड के कवियों एवं लेखकों ने भी खूब रचनाएं रचीं हैं. इंडियन माइंड उन कवियों एवं लेखकों का सम्मान करता है और उनकी रचनाओं का प्रकाशन कर खुद को गौरवान्वित महसूस करता है.

प्रस्तुत है वरिष्ठ साहित्यकार तथा व्याख्याता डॉ छोटू प्रसाद ‘चंद्रप्रभ’ की एक कविता और एक लेख.

कवि-लेखक परिचय

डॉ. छोटू प्रसाद ‘चंद्रप्रभ’
जन्म : 07 जुलाई, 1959
ग्राम : चंद्रमारणी, पोस्ट : सरिया, जिला–गिरिड़ीह ( झारखंड )
एक साधारण कृषक परिवार में जन्म। पी. जी. सेन्टर हजारीबाग से अर्थशास्त्र में एम. ए.। पुनः राँची विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र में एम. ए.। विनोबा भावे विश्वविद्यालय से पीएच, डी.। के. आर. एम. एम. वनांचल कॉलेज, गिरिड़ीह में अर्थशास्त्र के व्याख्याता। सम्प्रति गिरिड़ीह महाविद्यालय, गिरिड़ीह में इग्नू में अर्थशास्त्र, एम.ए.आर.डी. और पी.जी.डी.आर. डी. का काउंसलर।
लेखन व कृति : आखिर क्यों ?, आखिर वे क्यों नहीं लौटे (उपन्यास), शाक्यमुनि (प्रबंध काव्य) प्रकाशित। चंद्र के विविध चेहरे (गिरिड़ीह जिले की पृष्ठभूमि पर आधारित आंचलिक उपन्यास, प्रकाशनाधिन)।
कई कहानियां आकाशवाणी हजारीबाग से प्रसारित। कई कविताएं, कहानियां और लेख विभिन्न पत्रिकाओं और अखबारों में प्रकाशित। लवकुश विचारधारा ( सामाजिक पत्रिका ) के सम्पादक। प्रभात खबर के द्वारा बेस्ट अचिवमेंट आवार्ड से सम्मानित। साहित्यिक सेवा सतत जारी।

वर्तमान पता : सुमन वाटिका, अशोक नगर बरगंडा, गिरिडीह (झारखंड) सम्पर्क : 7488492918

फेसबुक : https://www.facebook.com/chhotu.prasad.589

 

एक कविता 

कहर प्रकृति का

रौद्र रूप
तांडव नृत्य
प्रकृति का
प्रचंड़ प्रहार
ढहाते तुफान
टूटते मेघ
कोरोना का कहर
घरों में सिमटती जिंदगी
निस्तब्धता चहूँ ओर
हजारों हर रोज
काल के मुँह में
समाते लोग
जिंदगी के जंग
हारते चिकित्सक
प्राकृतिक कहर
आपदा के संकेतक
स्मरण कराता
दो सदी पूर्व का
‘ माल्थस का सिद्धांत’
कराया था हमें सतर्क
पर हमने उनका
जमकर उड़ाया उपहास
नैसर्गिक उपहारों का
अविवेकपूर्ण दोहन
सुख से सुख की वृद्धि
न होती सदा
पर बढ़ती सतत
मानवीय अभीप्सा
नियंत्रित करने की
निहायत जरूरत
ग्रीड रिभ्यूल्शन’
ग्रीड रिभ्यूल्शन’ = लोभ क्रांति

 

एक लेख : समस्याएं कृत्रिम हैं

हम अपने जीवन की समस्याओं को दो वर्गों में रख सकते हैं –प्राकृतिक समस्याएं और कृत्रिम समस्याएं। बाढ, सूखा, भुकम्प , तूफान आदि प्राकृतिक समस्याएं है।अध्यात्म की दृष्टि से इन्हें दैविक समस्याएं हम कह सकते हैं। इन समस्याओं के समक्ष हमें कुछ हद तक नतमस्तक होने पड़ते हैं। इन पर हमारा वश नहीं होता। दूसरी ओर जनाभाव , जनाधिक्य , बेरोजगारी, भूखमरी, महमारी, व्यभिचार, चोरी, डकैती, अत्याचार, हत्याऐं, बलात्कार , राजनीतिक उठापटक व खरीद-बिक्री आदि कृत्रिम समस्याएं हैं। आज अखिल विश्व अपने द्वारा सृजित समस्याओं अर्थात कृत्रिम समस्याओं से अधिक त्रस्त है। आज रोज लोग कृत्रिम समस्याओं से अधिक मर रहे हैं।
आज हमारा समान्य जीवन की गति विनाशात्मक(Destructive) होती जा रही है। प्रतिस्पर्धा, महात्वाकांक्षा सब विनाशात्मक है। आज हमारे मस्तिष्क constructive कम destructive अधिक होते जा रहे है। हम सब पडोसी को नष्ट करने की दौड़ में हैं। आज हम पडोसी को नष्ट करने के लिए उत्सुक हैं। एक देश दुसरे देश को नष्ट करने के लिए आतूर हैं। पूरे विश्व में प्रतिस्पर्धा की भावना है। हर देश में वणिकवादी और जड़वादी धारणाएं प्रबल होती जा रही हैं। देश ही नहीं, आज हर व्यक्ति दूसरों की जेब साफ करके अपनी जेब भरना चाहता है। हमारी लालच की थाह नहीं है। The more we have , the more we want . यह कथन हममें चरितार्थ हो रहा है। वनों को उजाड़ कर, जलस्रोतों का अतिक्रमण करके हम घर, खेत और खलिहान बना रहे हैं , बडे़ -बड़े कल-कारखाने लगाये जा रहे हैं। फलतः वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण एवं मृदा प्रदूषण की समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं। मधुमेह, रक्तचाप, रक्त अल्पता आदि रोगों से युवाकाल से ही ग्रसित हो रहे हैं। हम अपने कर्तव्याकर्तव्य को भूल रहे हैं।भक्ष्याभक्ष्य पर विचार नहीं कर रहे हैं। मनुष्य को जिन्हें सृष्टि का सरताज मान जाता है, सर्वभक्षी होता जा रहा है। हमारा खानपान स्वास्थ्य की दृष्टि से नहीं स्वाद की दृष्टि से होता जा रहा है। रोड़ पर खाना और खड़े खाना हमारी आदत बनती जा रही है। Green revolution, Greed revolution का रूप लेता जा रहा है। हम खेतों में अधिकाधिक रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों के प्रयोग कर गहन कृषि की ओर उन्मुख हो रहे हैं। हमारे जैसे ही हमारे खेत भी नशेबाज होते जा रहे हैं।

आज विश्व में सुख-सुविधाओं और खाद्यान्नों की कमी नहीं है। फिर भी भौतिक सम्पदाओं के कुव्यवस्थित आवंटन के कारण एक चौथाई जनसंख्या भुखभरी और कुपोषण के शिकार हैं। आज हम विपुल सम्पदाओं के बावजूद अशांत हैं। अगर आज विश्व में कोई चीज की कमी है तो वह है, नैतिकता की और सुझबुझ की। हम साक्षर हो रहे हैं, शिक्षित नहीं। तन संवर रह है, मन नहीं। आज पढे-लिखे लोग भोजन को सबसे अधिक बर्बाद करते हैं भले ही वे भोजन के सम्मान हेतु मंत्र पढ़ते हों। अनपढ़ भोजन-मंत्र तो नहीं जानते , पर दाने-दाने का कद्र करते हैं। अनपढों में तो ईमानदार मिल जाते हैं लेकिन पढे-लिखे लोगों में ईमानदार को ढूँढना दुश्वार है। देखा जाता है कि एक गाय सौ फीसदी गाय होती है, कुत्ता सौ प्रतिशत कुत्ता होता है, गदहा भी सौ प्रतिशत गदहा होता है लेकिन आदमी सौ प्रतिशत है या नहीं, यह doubtful है। शायद इसीलिए एक प्रसिद्ध पाश्चात्य दार्शनिक हिगेल ने कहा था –“आदमी बनो।” सचमुच हमलोग पूर्णतया आदमी नहीं हो पाये हैं। हमलोगों में अभी भी अतीत का गुण पशुता विधमान है। हमलोग अपने पैर पर स्वयं कुल्हाड़ी मारते हैं और आजीवन कष्ट भोगते हैं।हम अपना ठीक से पेट भी नहीं भर पाते फिर भी बच्चे पैदा करते चले जाते हैं। जनसंख्या संबंधी विचारक T. R. Malthus ने कहा था ” प्रकृति की मेज सीमित अतिथियों के लिए ही लगी है । अतः जो बिना निमंत्रण के आयेगा, उसे अवश्य भूखों मरना पड़ेगा ।” इसलिए उन्होंने प्रतिबंधक अथवा कृत्रिम अवरोधों को अपनाने पर जोर दिया था। पर हमारे ऐसे शुभचिंतक को ‘काला भयंकर राक्षस ‘की संज्ञा दी गई। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने भी कहा था– “अधिक अन्न उपजाओ” आंदोलन से “कम बच्चे पैदा करो आंदलोन” अधिक सार्थक है और उनके द्वारा इस संबंध में कई सकारात्मक कदम भी उठाये गये नहीं तो अभी तक भारत की आबादी दो अरब पार कर गई रहती क्योंकि हमारा भारत प्रजनन वीर रहा है। यहां के खेतों से हमारे बिस्तर अधिक उपजाऊ देखे गये हैं। अभी भी हमारे देश में कुछ जाहिल लोग हैं जो अभी भी ‘ हम दो, हमारे दो’ के नारे की महत्ता को नहीं समझ रहे हैं।

.हम विचित्र प्राणी हैं। इसलिए हमारा देश भी विचित्र है।वर्तमान राज्य कल्याणकारी राज्य है। कल्याणकारी राज्य में राज्य का दायित्व from womb to tomb तक का रहता है फिर भी सरकार ने शराब ,सिग्रेट , गुटखा, तम्बाकू , जैसी नशीली सामग्रियों का उत्पादन और विक्रय हेतु लाइसेंस दे रखी है। क्या सरकार इनसे प्राप्त आमदनी से इनसे होनेवाली क्षति पूर्त्ति कर सकती है ? शराब तो हर तरह के पापों व अप्रिय घटनाओं की जननी है।शराब से देशवासियों के स्वास्थ्य का नाश होता है।कानून और व्यवस्था की स्थिति बिगड़ती है। सड़कों पर दुर्घटनाऐं होती हैं। अपराधों की संख्या बढ़ती है । देश में नैतिकता व सदाचार का पतन होता है। हमारी सरकार क्यों नहीं महात्मा बुद्ध की इस वाणी पर विचार करती है – ” जिस राज्य में मदिरा आदर प्रप्त करेगी , वह दुर्भिक्ष पड़ेंगे, औषधियाँ निष्फल होंगी। विपत्तियों के बादल मंड़रायेंगे।” शराब के उत्पादन करके उनके पॉकेट पर वैधानिक सतर्कता के तौर पर लिखवा देना मद्यपान स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है ‘ या Cigarette causes to death. कितना हास्यपद लगता है! यह जानकर बहुत ही आश्चर्य होता है कि हमारी जीवनोपयोगी चीजें हर जगह उपलब्ध हो या न हो पर नशीली वस्तुएं देश के कोने कोने में उपलब्ध रहती है। कितना विचित्र है !

अभी विश्व के अधिकांश देश कोरोना से ग्रसित हो चुका है। यह विकसित देश चीन के पढे-लिखे व्यक्तियों के द्वारा सृजित है।हम सभी जानते हैं कि अभी तक इस समस्या से तीस हजार व्यक्ति काल-कवलित हो चुके हैं। अगर इस पर जल्द नियंत्रण नहीं हो सका तो ज्यामितीय गति से लोग इसके शिकार होते जायेंगे। आज तो दूरी की मौत हो गई है। आज कहीं भी कोई घटना घटती है तो त्वरित गति से सर्वविदित हो जाती है। इसलिए बहुत पहले ही सरकार को सजग हो जानी चाहिए। विदेशी यात्रियों व पर्यटकों के आवागमन को अवरुद्ध कर देना चाहिए या फिर उनका ऐयरपोर्ट पर ही गहन परीक्षण हो जाना चाहिए। तभी उसे एयर पोर्ट से निकास की अनुमति देनी चाहिए। सीमाबंदी की जानी चाहिए। यही तो एक कुशल प्रशासक की पहचान होती है। पर ‘ठेस लगी, आँखें खुली ‘ वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। दूरदर्शिता की कमी खली। खैर, सरकार ने भले ही देर से कदम उठाया हो , लेकिन सशक्त है। इसमें धर्म और दलगत भावना से उपर उठकर जनसहभागिता की विशेष जरूरत है। इसपर अब कोई ओछी राजनीति नहीं होनी चाहिए। इस lockdown में गरीबों, मजदूरों , ठेलेवालों, झुग्गी-झोपड़ियों मे रहनेवालों को कितने अधिक तकलीफें झेलनी पड़ रही हैं, यह सोचिये। उन्हें एक छोटी कोठरी या झोपड़ी में जीवन गुजारने पड़ रहे हैं। मनोरंजन की बात तो बहुत दूर रही, उन्हें दो जून दो रोटी का भी नसीब नहीं है। दूसरी ओर अर्थव्यवस्था को भी विविध रूपों से क्षति हो रही है, यह तो बाद की बात है। इसकी भरपाई आनेवाले समय मैं देशवासियों को ही करनी होगी और इसके सर्वाधिक भार Have class पर तो नहीं Have not class पर पड़ेंगे।

अंततः निष्कर्ष में कहना चाहूँगा कि कोरोना ईश्वर प्रदत नहीं है, यह हमारी कृत्रिम समस्या है। इसलिए यह समस्या कृत्रिम उपायों से ही दूर हो पायेगी। इसकेलिए lockdown एक सरकार का सराहनीय कदम है। इसकी सफलता पर ही हमारी सफलता आश्रित है। अतः अभी हमें Divided we stand, United we fall की कहावत चरितार्थ करने की जरूरत है।

सादर, सविनय, सप्रेम।

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