कवि-लेखक अनंत ज्ञान की कविता ‘मुँह का पर्दा’ और लघुकथा ‘लॉकड़ाउन 4.0’

कोरोना काल में साहित्य की भी खूब रचनाएं रची जा रही हैं. झारखण्ड के कवियों एवं लेखकों ने भी खूब रचनाएं रचीं हैं. इंडियन माइंड उन कवियों एवं लेखकों का सम्मान करता है और उनकी रचनाओं का प्रकाशन कर खुद को गौरवान्वित महसूस करता है.

प्रस्तुत है कवि – लेखक तथा राष्ट्रीय कवि संगम, हज़ारीबाग के महासचिव अनंत ज्ञान की एक कविता और एक लघुकथा.

कवि परिचय

अनंत ज्ञान
पिता : ड़ॉ. छोटू प्रसाद
माता : श्रीमती रेखा वर्मा
जन्मतिथि :- 08.08.1989
शैक्षणिक योग्यता:–एम. एस.सी.( गणित), बी.एड़
सम्प्रति: ज्यूड़िशियल असिस्टेंट, सिविल कोर्ट, हजारीबाग
आवासीय पता : सुमन वाटिका, अशोक नगर(बरगंडा), गिरिडीह (झारखंड)
पिन कोड:–815301
ई मेल : anantpoetryworld@gmail.com
वर्तमान में राष्ट्रीय कवि संगम, हज़ारीबाग के महासचिव।

 

मुँह का पर्दा

शहर के सभी पशु पक्षी हो रहे थे हैरान,
मास्क लगा कर आज क्यों घूम रहा इंसान,

समझ नहीं पा रहा था कोई भी यह राज़,
इंसानों को आखिर हुआ भला क्या आज,

पान गुटखा खा जो इधर उधर थुकते हैं ,
अचानक से वे मुँह छिपाकर क्यों घुमते हैं,

सभी जानवर सोच रहे थे तरह तरह की बात,
अनुमान भी लगा रहे थे सभी साथ ही साथ,

मुँह पर यदि पर्दा लगा लें सभी लोग ऐसे,
तो फिर हमलोगों को पकाकर खाएंगे कैसे ?

जीव हत्या करना फिर तो इंसान भूल जाएंगे,
और पर्दा यदि हटा तो फिर से मुँह खूल जाएंगे,

हो सकता है प्रदूषण से बचने हेतु लगा रहे पर्दा
नहीं जाएगा कभी अंदर धूल, मिट्टी और गरदा,

तब छन कर आएगा बाहर सिर्फ मीठे सच्चे बोल,
इंसान के कर्मों ने दिलाया उनको यह पर्दा अनमोल।

लॉकड़ाउन 4.0 (लघुकथा)

“अरे सुलेखा देखा न टीवी ?”
“अभी हमलोग का स्कूल नहीं खुलने वाला, फिर से लॉकडाउन बढ़ा दिया गया है ” समीर खुशी से चहकते हुए बोला ।
सुलेखा उसकी बात अनसुनी करते हुए चुपचाप सिर झुकाए दाहिने पैर के अँगूठे से ज़मीन से मिट्टी कुरेदती रही ।
“अरे, तुम खुश नहीं हुई क्या सुनकर ?” सुलेखा के हाव- भाव को विस्मित रूप से देखते हुए समीर पूछ बैठा , और बिना उसके उत्तर का इंतज़ार किए वह फिर से बोल पड़ा..”अब कुछ दिन और हमलोग घर में एंजॉय कर पाएंगे, कोई पढ़ाई, कोई होमवर्क, कुछ नहीं, मजा आ जाएगा एकदम ।
सुलेखा इस बार भी चुप ही रही । सुलेखा की चुप्पी से समीर आहत हो उठा ….”अरे! तुम कुछ बोलती क्यों नहीं ? इस समाचार से खुश नहीं हुई क्या ?
सुलेखा अब कुछ बोलती उसके पहले उसके नैन बोल पड़े । समीर ने देखा सुलेखा की आँखें भर आई हैं । उसे कुछ समझ में नहीं रहा था ।
दोनों थोड़ी देर गुमसुम रहे । फिर सुलेखा खुद को नियंत्रित करते हुए बोल पड़ी…..”हमारे घर में राशन पूरी तरह से खत्म हो गया है और इस बार भी लॉकड़ाउन में पापा अपना सैलुन नहीं खोल पाएंगे।” मेरी माँ पापा से कह रही थी…सुलेखा का स्कूल खुल जाता तो एक टैम तो बेटी का पेट वहाँ भर ही जाता।

 

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