पृथ्वी दिवस पर पर्यावरण संरक्षण की जागरूकता

पृथ्वी दिवस (Earth Day) 22 अप्रैल 2020

रांची : रांची विश्वाविधालय की राष्टीय सेवा योजना ईकाई के स्वयंसेवकों द्वारा एनएसएस टीम लीडर दीपक गुप्ता के नेतृत्व में पृथ्वी दिवस (22 अप्रैल) के अवसर पर पेड-पौधा लगाकर, पेन्टिग बना कर, विडियो बना कर जागरुक किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण के प्रति लोगों को जागरूक बनाना है।


पृथ्वी को संरक्षण प्रदान करने के लिए और सारी दुनिया से इसमें सहयोग और समर्थन करने के लिए पृथ्वी दिवस प्रतिवर्ष 22 अप्रैल को मनाया जाता है। इस दिन को 193 देशों ने अपना समर्थन प्रदान किया है।

हमारे सौरमंडल में केवल धरती ही ऐसा ग्रह है, जहां जीवन है, जहां नदी, झरने, पहाड़, वन, अनेक जंतु प्रजातियां हैं और जहां हम सब मनुष्य भी हैं। लेकिन हम सब की लालच और लापरवाही ने ना केवल दूसरी जीव प्रजातियों के लिए बल्कि खुद अपने लिए और संपूर्ण धरती के लिए संकट पैदा कर दिया है। ऐसे में पृथ्वी दिवस जैसे आयोजन हमें जागरूक करने के लिए जरूरी हैं।
सभी स्वयंसेवक द्वारा लोगो को संदेश दिया गया कि आइए इस पृथ्वी दिवस पर हम धरती की पुकार सुनें और इसे स्वच्छ-सुरक्षित बनाए रखने में अपना भरपूर योगदान दें।


भारतीय पौराणिक ग्रंथों में पृथ्वी को मां के समतुल्य माना गया है। यह हम सबकी आश्रयदाता है। इसकी रक्षा करना हमारा कर्तव्य है। इस पर मौजूद बेशुमार संसाधन, उपहार के रूप में हम सबको मिले हैं। प्रकृति ने इस पर जल, नदियां, पहाड़, हरे-भरे वन और धरती के नीचे छिपी हुई खनिज संपदा धरोहर के रूप में हमारे जीवन को सहज बनाने के लिए प्रदान किए हैं। हम अपनी मेहनत से धन तो कमा सकते हैं लेकिन प्रकृति की इन धरोहरों को अथक प्रयास करने के पश्चात भी बढ़ा नहीं सकते। इसलिए हम सबको इन धरोहरों को संजोने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। हमारी धरती बहुत ही सुंदर है। इसका एक बड़ा भाग पानी से ढंका हुआ है। पानी की अधिकता के कारण ही इसे ब्ल्यू प्लेनेट के नाम से भी जाना जाता है। लेकिन हम सबकी ही लापरवाही के चलते ग्लोबल वार्मिंग और पॉल्यूशन की वजह से यह सुंदर ग्रह अब खतरे में नजर आ रहा है। इसको बचाने के लिए पृथ्वी दिवस जैसे जागरुकता बढ़ाने वाले आयोजनों और अभियानों की आवश्यकता है।इसमे हम सभी को आगे अकर इसे बचाने का संकल्प लेने की आवश्यकता है।


जब पहला पृथ्वी दिवस मनाया गया, तब यूनाइटेड स्टेट्स के दो हजार से अधिक कॉलेज, यूनिवर्सिटी और हजारों प्राथमिक और माध्यमिक स्कूल के अनेक समुदायों ने इसमें भाग लिया और शांतिपूर्ण ढंग से पर्यावरण की गिरावट के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया था। 1970 में पहला पृथ्वी दिवस मनाया गया। तब से 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिवस की परिकल्पना अमेरिकी सीनेटर, जेराल्ड नेल्सन ने की थी। पृथ्वी दिवस एक बहुत ही सफल अंतरराष्ट्रीय राजनीतिक पहल योजना साबित हुआ है, जिसे भरपूर समर्थन मिला है। जिनमें रिपब्लिकन, डेमोक्रेट, अमीर-गरीब, बड़े-छोटे व्यवसायी, सांसद, मजदूर किसान सभी शामिल हुए। इसके साथ ही स्वच्छ वायु, स्वच्छ पानी और लुप्त हो रही प्रजातियों को संरक्षित करने का अधिनियम पारित किया गया।


वर्तमान दौर में पृथ्वी दिवस को एक पर्व की तरह दुनिया भर में मनाया जाने लगा है।
वर्तमान में स्वच्छ वातावरण का मुद्दा गंभीर होता जा रहा है, क्योंकि जलवायु में परिवर्तन विनाशकारी रूप धारण करता जा रहा है।
हमें इस बात को समझना होगा कि ग्लोबल वार्मिंग से पर्यावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में जीवन संपदा को बचाने के लिए पर्यावरण को ठीक रखने के बारे में जागरूक रहना आवश्यक है।
जनसंख्या की बढ़ोतरी ने प्राकृतिक संसाधनों पर अनावश्यक बोझ बढ़ा दिया है। इसलिए इसके संसाधनों के उचित प्रयोग के लिए पृथ्वी दिवस जैसे कार्यक्रमों का महत्व बढ़ गया है।

पृथ्वी दिवस का महत्व मानवता के संरक्षण के लिए बढ़ जाता है, यह हमें जीवाश्म ईंधन के उत्कृष्ट उपयोग के लिए प्रेरित करता है। इसको मनाने से ग्लोबल वार्मिंग के प्रति जागरुकता के प्रचार पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो हमारे जीवन स्तर में सुधार के लिए प्रेरित करता है। ऐसे आयोजन ऊर्जा के भंडारण और उसके महत्व को बताते हुए उसके अनावश्यक उपयोग के लिए भी हमें सावधान करता है।
1960 के दशक में कीटनाशकों और तेल के फैलाव को लेकर जिस तरह से जनता ने जागरुकता दिखाई थी, उस जागरुकता की वजह से नई स्वच्छ वायु योजना बनी थी। इस वजह से अब जो भी नया विद्युत संयंत्र शुरू होता है, उसमें कार्बन डाइऑक्साइड को कम मात्रा में उत्सर्जित करने के लिए अलग यंत्र लगाया जाता है, जिससे पर्यावरण में इसका कम फैलाव हो और नुकसान कम हो।
हर वर्ष पृथ्वी दिवस की कोई एक थीम निर्धारित की जाती है। इस साल यानी 2020 के लिए थीम जलवायु कार्रवाई है। जलवायु परिवर्तन मानवता के भविष्य और जीवन-समर्थन प्रणालियों के लिए सबसे बड़ी चुनौती है, जो हमारी दुनिया को रहने योग्य बनाता है।
भारतवर्ष जैव संपदा की दृष्टि से समृद्धतम देशों में से एक है। विश्व में पाई जाने वाली विभिन्न प्रजातियों के लगभग 40 प्रतिशत जीव-जंतु भारत में पाए जाते हैं। लेकिन इंसानी लालच और वनों के कटाव की वजह से उक्त प्रजातियों में बड़ी तेजी से गिरावट आने लगी और कालांतर में कुछ प्रजातियों का अस्तित्व ही समाप्त हो गया। यद्यपि विलोपन एक जैविक प्रक्रिया है लेकिन असमय विलोपन का कारण पर्यावरणीय परिस्थितियों में अवांछनीय परिवर्तन, वन्य जीवों के प्राकृतिक वासों का विनाश, वनों का कटाव और तीव्र गति से बढ़ता औद्योगिकीकरण है।
हर वर्ष पृथ्वी दिवस की एक अलग थीम होती है और उस थीम के आधार पर ही उस वर्ष उस बिंदु पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है।

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