सूर्यदेव को कृतज्ञता ज्ञापन करने का महापर्व है छठ

महेन्द्रनाथ गोस्वामी ‘सुधाकर’

“आदित्यात जायते वृष्टि,,,,” अर्थात् सूर्य ही वर्षा का कारक है ! श्रीमद्भागवत गीता का यह श्लोकांश हमारे देश के मौसम विभाग का सूत्रवाक्य भी है ! जिसके विस्तृत अर्थ में – सूर्य के ताप से बादल , बादलों से वर्षा , वर्षा से वृष्टि , वृष्टि से कृषि , कृषि से अन्न और अन्न से जीवन की रक्षा होती है ! अक्षय उर्जा का स्रोत है – सूर्य ! इस तरह समस्त सृष्टि का कारक है -सूर्य ! जिसकी अभ्यर्थना और वंदना मानव आदिकाल से ही करता आ रहा है ! इसलिए सूर्योपासना को यदि मानव सभ्यता के विकास का इतिहास कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी ! हमारा वैदिक वाङ्मय सूर्य के प्रशस्ति गान से भरा पड़ा है क्योंकि जीवन रक्षा सबसे बड़ा धर्म है और जीवन की रक्षा जिन चीजों से होती है वह मानव समाज में स्वत: ही उत्सवों का रुप ले लेता है !

कार्तिक माह एवं चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि तिथि को मनाया जाने वाला- ” छठ महापर्व ” भी मूल रूप से सूर्य के प्रति मानवों द्वारा कृतज्ञता ज्ञापन के रूप में देखा जा सकता है !
इस पर्व में विभिन्न प्रकार के कंद – मूल , फल – फूल , अन्न और अन्न से तैयार किए गए मिष्ठान , पकवान आदि सूर्यदेव को प्रसाद के रूप में अर्पित किया जाता है ! अर्पित किए जाने वाली सारी सामग्रियां कृषि से ही प्राप्त होती हैं और उनको उपजाने वाले होते हैं – कृषक ! इस तरह बहुत हद तक संभावना है कि , कृषकों द्वारा ही इस पर्व की शुरुआत की गई होगी !
यह भी सर्वविदित है कि, छठ पर्व की शुरुआत की- भूमि गंगा – दोआब की उपजाऊ भूमि ही रही है ! इस तरह गंगा दोआब की भूमि पर आदिकाल से निवास करने वाले कुछ बुद्धिजीवी वर्ग के विचारवान कृषकों के हृदय में कभी सूर्यदेव के प्रति कृतज्ञता भाव जागृत हुआ होगा और उनके द्वारा उपजाए गए फल – फूल , कंद – मूल, एवं अन्न को बांस के बने सूप – टोकरियों में भरकर इस विशिष्ट तिथि को पूरी शुद्धता , श्रद्धा – भक्ति और निष्ठा से सूर्य को अर्पित किया गया होगा और उनके मुंह से अनायास ही अभ्यर्थना के शब्द फूट पड़े होंगे -” हे सूर्यदेव ! तुम्हारी कृपा से ही हमने इन सारे कंद,मूल, फल, फूल और अन्न आदि उपजाए हैं ! इसके लिए हम तुम्हारे प्रति कृतज्ञ हैं और आज हम तुम्हें ये सभी वस्तुएं अर्पित करते हैं और तुम्हारा कृतज्ञता व्यक्त करते हैं ! ” शायद इसीलिए इस पर्व में किसी कर्मकाण्ड, अथवा ब्राह्मण और वेद मंत्रों की आवश्यकता नहीं होती है !

और फिर कालांतर में वेद – शास्त्रों का आधार बनाकर कार्तिक मास और चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की विशिष्ट षष्ठी तिथि को छठ पर्व मनाये जाने की परंपरा चल पड़ी होगी ! कालांतर में ही कृषि कर्म से जुड़े लोगों के इस त्यौहार में कृषि कर्म से इतर समुदाय के लोग भी इस पर्व के साथ जुड़ते चले गए और कृषि -सभ्यता के इस पर्व ने ” आस्था के महापर्व ” का रुप धारण कर लिया !

लोक आस्था के इस महापर्व से जुड़े नियमों, विध – विधान , क्रिया – कलाप , शुद्धता, और पूरी श्रद्धा भक्ति एवं निष्ठापूर्वक फल – फूल , कंद – मूल , अन्नादि , बांस की बनी सूप , टोकरी , बहंगी , आदि का प्रयोग कुछ विशिष्ट अर्थों को दर्शाता है ! पहला तो यह कि हर घर – परिवार के किसी न किसी व्यक्ति को कुछ न कुछ फल – फूल , कंद,मूल, अन्न आदि अवश्य उपाजाने चाहिए, भले ही वह बहुत सीमित दायरे में ही क्यों न हों ! चाहे घर के पीछे की खाली पड़ी जमीन हो , चाहे छत पर गमलों में , या फिर किचन गार्डन में ही हो , क्योंकि आजकल घरों में किचन गार्डन बनाने के पीछे भी यही दृष्टि हो सकती है !
आज छठ पर्व करनेवाले अधिकांशतः बाजार से खरीद कर लाए गए वस्तुओं का ही उपयोग करते हैं , जबकि कितना अच्छा होता अगर वे बाजार से नहीं खरीदकर प्रसाद की वस्तुएं स्वयं के उपजाए फल,फूल,मूल एवं अन्न को ही सूर्यदेव को अर्पित करते !
दूसरी बात यह है कि, आज देखा जा रहा है छठ पर्व का समय नजदीक आते ही लोग नदी , तालाबों के घाटों की साफ सफाई के लिए सरकारी योजनाओं का मुंह देखने लगते हैं या फिर स्थानीय नेताओं , अथवा स्वयंसेवी संस्थाओं के आगे आने का इंतजार करते हैं ! जबकि होना यह चाहिए कि, हम जिन नदी – तालाबों का उपयोग न केवल इस पर्व के अवसर पर बल्कि अन्य दिनों में भी करते हैं , उन्हें हमेशा ही स्वच्छ रखना चाहिए क्योंकि,जल ही हमारे जीवन का आधार है ! परंतु ऐसा न करके केवल छठ पर्व के अवसर पर ही जलाशयों की सफाई पर ध्यान दिया जाता है ! आज हमारे देश में प्रदूषित जलाशय हर त्योहार का समाहार बन चुका है क्योंकि चाहे वह मूर्ति विसर्जन हो , पर्व -त्योहार प्रयुक्त घास – फल, फूल आदि का विसर्जन हो , हम उन सभी चीजों को नदियों , तालाबों , जलाशयों में ही विसर्जित करते हैं ! जिसके परिणामस्वरूप आज हमारे जलस्रोत गंगा से लेकर अन्य जलाशयों तक प्रदूषित होने लगे हैं , जबकि यह बात हमारे खान – पान , और परिवेश की स्वच्छता के साथ भी जुड़ी हुई है ! इस महापर्व के अवसर पर ही हम यथासंभव अपने गांव, गली, मोहल्लों की भी साफ – सफाई कर स्वच्छ रखने का केवल औपचारिकता ही पूरी करते हैं क्योंकि , अनेक व्रती स्त्री – पुरुष घर से साष्टांग दंडवत करते हुए जलाशयों तक जाते हैं ! तो फिर इस एक दिन के लिए ही क्यों, क्यों नहीं हम पूरे वर्ष भर अपने गली – मोहल्लों एवं परिवेश को स्वच्छ बनाए रखें ? क्योंकि परिवेश की स्वच्छता और मंगल-पूत वातावरण ही तो मन की निर्मलता का कारक है ! भोजन सामग्री की तैयारी में भी हमें सावधानी पूर्वक और स्वच्छता एवं शुद्धता बरतनी चाहिए , इसकी सीख भी हमें इस महापर्व के प्रसाद की तैयारी में सावधानी बरतने के तौर पर मिलती है!

अतः यदि हम इस छठ महापर्व के उपर्युक्त संकेतों को समझकर अपने जीवन में उतारें तो शायद हमारा जीवन सुखमय होगा! इसलिए इस महापर्व पर उसके संकेतों को हमें अपने जीवन में आत्मसात करने का संकल्प लेना चाहिए!

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *