गौरैया… जाने तुम कहाँ चले गए
विशेष- विश्व गौरैया दिवस
मनोज कुमार
मनुष्य जहां-जहां अपनी बस्ती बनाया गौरैया अपनी दोस्ती निभाया। गौरैया को चिरी, चेर, चराई पाखी, चिमनी, चकली, धरास्टिया, बुछुका और गुबाची आदि के नाम से भी जाना जाता है जबकि इस नन्हीं जान पक्षी का वैज्ञानिक नाम पासर डोमेस्टिकस है। 40 किमी की रफ्तार से उड़ान भरने वाली इस चिड़िया की 43 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। झुंडों में उन्मुक्त विचरण करने वाली मांसाहारी प्रकृति की यह चिड़िया जामुन बेर और छोटे-छोटे बीज भी खाती है। पर्यावरण और किसान हितैसी गौरैया फसलों से कीड़े-मकोड़े का भक्षण करती है। नर गौरैया घोंसले बनाने में बहुत निपुण होते हैं। गौरैया को शुभंकर चिड़िया माना जाता है। इसे दिल्ली और बिहार की राजकीय पक्षी बनाया गया है।
बचपन में जिस छोटी चिड़िया को अपने आँगन में देख कर हम बड़े हुए हैं, आज वह हमसे रूठ कर दूर चली गई है। आधुनिकता और विकास के जाल में पर्यावरण का संतुलन उलझता जा रहा है। पर्यावरण को संकट से बचाने के लिए प्रकृति समय-समय पर ऐसा दस्तक देती है, जिससे जीव-जन्तु, पेड़-पौधे समेत मनुष्य भी निशाना बनता है। पुराने जमाने में मिट्टी के घर और आँगन में गौरैये का रैन बसेरा था। बड़े और आलीशान घरों ने गौरैया के घरौंदा को रौंदा है। कंक्रीट के शहरी जंगल परिंदों के झुरमुट को बहुत तेजी से उजाड़ रहा है। एक सर्वे के अनुसार हाल के दशकों में गौरैया की संख्या में 80 फीसद कमी दर्ज की गई है। मोबाइल टावर की हानिकारक तरंगें गौरैया की प्रजनन शक्ति क्षीण कर दिया है। अहमदाबाद जैसे बड़े शहरों में आयोजित पतंग प्रतियोगिताओं की माँझेदार डोरियाँ पेड़ों और बिजली के खंभों में उलझ कर मासूम परिंदों के गले का फांस बनती हैं।
आने वाली पीढ़ियों के पचपन में फिर से गौरैया का गीत समाहित करने के लिए परिंदों को बचाना होगा। उन्हें दाना-पानी देना होगा। जब जल-जंगल और जंगली जीव सुरक्षित रहेंगे तब हम भी सुरक्षित रहेंगे।
नोट– लेखक भारतीय जीवन बीमा निगम में अधिकारी हैं और यूरेका ग्रुप ऑफ इंटरनेशनल जरनल के एडिटोरियल बोर्ड के मेंबर हैं।