वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश चंद्र गुप्ता ‘रविकर’ की कोरोना काल की रचनाएं
कोरोना काल में साहित्य की भी खूब रचनाएं रची जा रही हैं. झारखण्ड के कवियों एवं लेखकों ने भी खूब रचनाएं रचीं हैं. इंडियन माइंड उन कवियों एवं लेखकों का सम्मान करता है और उनकी रचनाओं का प्रकाशन कर खुद को गौरवान्वित महसूस करता है.
प्रस्तुत है वरिष्ठ साहित्यकार दिनेश चंद्र गुप्ता ‘रविकर’ की कोरोना काल की रचनाएं.
कवि-लेखक परिचय
दिनेश चंद्र गुप्ता ‘रविकर’
जन्म : 15 अगस्त 1960
माता : स्व विद्योत्मा देवी
पिता : स्व लल्लूराम गुप्ता
आई.आई.टी (आईएसएम) धनबाद में टेक्निकल सुपरिटेंडेंट
साझा संस्करण
1) दोहा-दर्पण अनुसन्धान प्रकाशन गजियबाद
2) विविध-प्रसंग रेडग्रैब प्रकाशन इलाहाबाद
3) दोहा-प्रसंग रेडग्रैब प्रकाशन इलाहाबाद
4) आधुनिक-दोहा आलोक प्रकाशन नारनौल
5) झारखण्ड-कुसुम, मुख्य-संपादक
अयन प्रकाशन, नई दिल्ली
6) साझा कुंडलियाँ संग्रह, नई दिल्ली
सम्मान
1) सारस्वत सम्मान 2017
श्री वैद्यनाथ संस्कृत पुस्तकालय देवघर
2) साहित्य-भूषण सम्मान 2019 साहित्य शारदा मंच खटीमा उत्तराखंड
2017 से व्हाट्सएप पटल छंद के छलछंद कार्यशाला पर छंद सिखा रहा हूँ
मोबाइल : 8521396185
मेल : dcgpth@gmail.com
कोरोना मुक्तक
झाड़ू लगाने में सदा, आगे बढ़ा जाता बलम।
पोछा करो पीछे खिसक, क्या ये नहीं आता बलम।
क्या काटने से पूर्व भिंडी धो लिया था आपने-
बस एक ही सब्जी पका लो, कौन दो खाता बलम।
झप्पी पाके मित्र वह, सीढ़ी पर चढ़ जाय।
जाँच #पाजिटिव बोलकर, दरवाजा खुलवाय।
दरवाजा खुलवाय, मगर मै तो घबराया।
सैनिटाइजर लाय, रगड़ कर खूब नहाया।
कोरोना का खौफ, तभी मेरे घर आके।
#लड्डू देता मित्र, हँसे हम झप्पी पाके।।
खामोशी से नेक कर्म कर, दे दरिया में डाल।
बोलेंगी खुद-ब-खुद दुआऐं, रखना उन्हें सँभाल।
हल्ला-गुल्ला शोर-शराबा, करे शराबी मार
टैक्स कमाने के चक्कर मे, पड़ी सभी सरकार।।
तालाबंदी ने दुनिया पर, असर भयंकर डाला।
जीडीपी डूबी तो डूबी, गया न देश सँभाला।
कोरोना ने सरकारों का, दिया निकाल दिवाला।
मंदिर मस्जिद चर्च बंद हैं, किन्तु खुली मधुशाला।।
मदिर नयन मदिरा पिला, रही लुटाती प्यार।
तालाबंदी ने किया, रविकर बंटाधार।
करे पटैती आज वह, जेठानी की भाँति-
लेकिन ठेके खोल के, भला करे सरकार।।
कोरोना का रोना छोड़ो, यूँ मत आह भरो।
आयुष मंत्रालय की मानो, अब मत व्यर्थ डरो।
साफ-सफाई सीखा फिर भी, बाहर मत विचरो-
होनी थी जो हानि हुई अब, नवनिर्माण करो।।
पहले पहले लगा सभी को, कर लेंगे कंट्रोल।
किन्तु आज ही खुली हमारी, सबके सम्मुख पोल।
साथ साथ अब जीना इसके, यह आदत ली डाल।
#कोरोना हो या #बीवी हो, मुँह मत रविकर खोल।।
दूर दूर से वापस आते, मंजिल पास बुलाती।
कई काल के गाल समाते, बस उनपर चढ़ जाती।
उभयपक्ष तो गाल बजाते, राजनीति का खेला।
बढ़ चढ़ कर आरोप लगाते, करते झोल-झमेला।।
पुत्र उवाच
#सहन में बैठ कर बातें, #सहन करना पड़े तो क्या
सुनाती माँ खरी-खोटी, सुनें सारे बड़े तो क्या
सँभाली लॉकडाउन में अकेले ही सभी को माँ-
रसोई कर चुकी फिर भी न सोई वह लड़े तो क्या
पड़ी हैं आज लावारिस, दुकानें सम्पदा सारी।
रुका आवागमन सारा, व्यथित हर देश नर-नारी।
सुना था मौत जब होती, यहीं सब छूट जाता पर-
सभी कुछ आज जीते जी, छुड़ा देती महामारी।।
फैली महामारी गजब मुस्कान तक दुखदायिनी।
इकतीस दिन से दूर दो गज रह रही गजगामिनी।
हर काम करवाती रही, करके इशारे भामिनी।
पर एक भी गिनती नहीं, मैं दास वह गृह स्वामिनी।।
फैला चुका है चीन कोरोना महामारी यहाँ।
मैला हुआ आँचल धरा का दृश्य भयकारी यहाँ।
होंगे करोड़ों संक्रमित, है संक्रमण जारी यहाँ-
लाखों मरें हैं आजतक है और तैयारी यहाँ।।
#पहला बंदर बंद करे मुँह, #दूजा बंदर कान।
रखे #तीसरा आँख बंद कर, #चौथा अंतर्धान।।
आज सामने आया चौथा, बंदर वह शैतान।
नाक बंद कर बैठा घर में, गांधी जी की मान।।
हुआ जो लॉकडाउन तो, किया हर एक ने स्वागत।
विदाई कामवाली की मगर पैदा करे आफत।
सफाई की रसोई की करेगा कौन अब चिंता-
निकम्मे आलसी पति की तभी तो बढ़ गयी कीमत।।
कोरोना दोहे
कोरोना-घन घोर अति, हो मरकज़ से वृष्टि।
घन-प्रहार से तोड़ दो, बचे न वरना सृष्टि।।
कंधों पर घरबार का, रहे उठाते भार।
आज वायरस ढो रहे, मानव-तन धिक्कार।।
करें बीस सौ बीस को, हे प्रभु अनइंस्टाल।
इंस्टालिंग फिर से करें, एंटिवायरस डाल।।
गाली खाने में मियाँ, पिछड़ गया ना’पाक।
कोरोना से चीन ने, जब कटवा ली नाक।।
तालाबंदी में नहीं, बाहर निकलें लोग।
किन्तु न निकले पेट भी, करो नियम से योग।।
छुड़ा सका तांत्रिक कहाँ, सौतन जुँआ शराब।
तालाबंदी ने किया, किन्तु सत्य हर ख्वाब।।
मोदी जी बिगबॉस सा, देते रहते टास्क।
किन्तु न घर बाहर करें, पहना रक्खा मास्क।
ट्वेंटी-ट्वेंटी वर्ष की, बिडम्बना तो देख।
टेस्ट-मैच सा माथ पर, खींचे चिंतारेख।।
तालाबंदी में नहीं, बाहर निकलें लोग।
किन्तु न निकले पेट भी, करो नियम से योग।।
गाली खाने में मियाँ, पिछड़ा अपना पाक।
कोरोना की युक्ति से, बढ़ी चीन की धाक।।
अल्कोहल का भी धुला, बदनामी का दाग।
दी समाज ने मान्यता, चल कोरोना भाग।।
जुड़ जाने से आप सब, सकते सिंह दबोच।
किन्तु अकेले को कभी, ले गीदड़ भी नोच।।
कोरोना पीड़ित हुआ, ताला तोड़ फरार।
कौन उसे लेगा छुपा, कह न सके अखबार।
जला जला रविकर दिया, दिया तीलियाँ फूँक।
शुभ प्रभाव पर किन्तु कुछ, रहे जमाती थूक।।
रविकर सबने पा रखी, दो पारखी निगाह।
फिर भी क्यों प्रभु से अलग, उन्हें दिखे अल्लाह।।
नहीं नमूने दे रहे, कई नमूने आज।
धौंस जमाती भीड़ यह, कहीं न आती बाज।।
समझाने से समझते, यदि काँधारी पूत।
होता क्यों कुरुक्षेत्र में, महायुद्ध आहूत।।
जुड़ी कड़ी से यदि कड़ी, बचे न रविकर जान।
पड़ जायेंगे शर्तिया, छोटे कब्रिस्तान।।
फिक्रमंद निःस्वार्थ जो, रखे सभी का ख्याल।
मत खोना भारत उसे, बात न उसकी टाल।।
चुनौतियों से शर्तिया, पा जाते हम पार।
जमातियों ने कर दिया, लेकिन बंटाधार।।
मरकज़ से फैली क़ज़ा, बाँटा चीन प्रसाद।
हुए विधाता वाम तो, बढ़ा और उन्माद।।
यह धर्मस्थल धन दिया, वह लंगर उपहार।
कोई कोरोना दिया, बढ़िया धर्म प्रचार।।
दानवीर बन कर्ण सा, है कोरोना काल।
कुम्भकर्ण भी बन मगर, सो ले आधा साल।।
बना लिया घर शौक से, रविकर आलीशान।
किन्तु न रुकना चाहता, उसमें ही नादान।।
अस्पताल या घर चुनो, अथवा फोटो-फ्रेम।
हैं विकल्प तीनों खुले, सत्ता कहे सप्रेम।।
परिष्कार परिसर करे, शंखनाद अनुनाद।
कहता है विज्ञान भी, हो विषाणु बरबाद।।
खैर मनाओ रोककर, रविकर मेल-मिलाप।
छोड़े कोरोना कहऱ, वरना मात्र विलाप।।
हवा वक्त हालात हों, यदि हैरतअंगेज।
रुख उसूल संयम क्रमिक, तब भी रखो सहेज।।
है प्रवास बेहद बुरा, भला कहाँ सहवास।
होगा एकलवास से, कोरोना खल्लास।
समुचित अनुचित राय से, होता हृदय अशांत।
अच्छा है देहांत से, किन्तु एक एकांत।।
कर्फ्यू का निर्णय करे, सत्ता ताबड़तोड़।
तालाबंदी तोड़ मत, मत अपना घर छोड़।
करो न दो-दो हाथ तुम, धरो हाथ पर हाथ।
मार सके थे बालि को, छुपकर ही रघुनाथ।।
राजमार्ग रविकर अगर, भीड़-भाड़ से मुक्त।
आगे कोरोना बढ़े, करके किसे प्रयुक्त।।
हास्य
सूजी लाने के लिए, पप्पू गया बजार।
उसकी सूजी देखकर, दिखा रही माँ प्यार ।।
रखता हमें कपूर भी, कोरोना से दूर।
सुनकर लाया लखनऊ, बेबी डॉल कपूर।।
#मोटा भाई / छोटा भाई”
कहो कौन नवरात्रि में, रहा डाँडिया खेल।
खेल रही मेरी पुलिस, लगा बेंत में तेल।।
कोरोना चैलेंज को, करे पाक स्वीकार।
अस्सी एकड़ भूमि पर, कब्रिस्तान तयार।।
दारूबाजों की बढ़ी, रविकर आज जमात।
हिन्दू मुस्लिम सिक्ख की, करो न कोई बात।
रविकर संस्कारी बड़ा, किन्तु न माने लोग।
#सोलहवें #संस्कार का, देखें अपितु सुयोग।।
#होनहार विरवान के, होते चिकने पात।
हो न #हार उनकी कभी, देते सबको #मात।।
कोरोना योद्धा सतत्, जग को रहे उबार।
हो न #हार तो #पुष्प से, कर स्वागत सत्कार।।
सके स्वावलंबन सिखा, कभी नहीं माँ-बाप।
बीवी से गत मास ही, सीखा अपने-आप।।
सोरठा
यत्न करे सरकार, शौच खुले में बंद हो।
कोरोना सुविचार, नहीं खुले में थूकना-
बढ़े मामले, शव बढ़े, केशव रूप विराट।
किस के शव को देखकर, भीगा पार्थ ललाट ??
कटे न काटे बल्कि नित, काटे मुझको शाम।
बिता चुका फिर भी कई, चुका-चुका के दाम।।
रही वायरस से बचा, करती दूर तनाव।
अर्थव्यवस्था ले बचा, करके जोड़-घटाव।।
गये काल के गाल में, जब बेबस मजदूर।
गाल बजाते पक्ष दो, दोनों मद में चूर।।
कपि की दुम को दो जला, जिसने दिया सलाह।
#ठेके खुलवाकर वही, करने चला तबाह।।
कोरोना दहला रहा, नहला रहा *कलाल।
नहले पर दहला पटक, सत्ता करे धमाल।।