हम और हमारा पर्यावरण

मनोज कुमार

पर्यावरण दिवस की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयास से 5 जून 1972 को हुई। संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा आयोजित सम्मेलन में 5 जून 1972 को पहली बार संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण दिवस मनाया गया था। उस सम्मेलन में 119 देशों ने हिस्सा लिया था। सन 1974 से प्रत्येक वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। क्या वर्ष में एक दिन पर्यावरण संरक्षण की बात कर लेने से पर्यावरण के प्रति हमारा कर्तव्य पूरा हो जाता है? प्रातः काल से शयन काल तक प्रकृति का निरंतर दोहन हो रहा है। सो जाने के बाद भी एसी, फ्रिज आदि पारिस्थितिकी और पर्यावरण को हानि पहुंचाने में लगे रहते हैं। जीवन रक्षक ओज़ोन परत का क्षरण हो रहा है, जिससे नए-नए रोग उत्पन्न हो रहे हैं। प्रकृति गाय की तरह भोली भी है और शेरनी की तरह आक्रामक भी। आज प्रकृति खूंखार शेरनी की भांति हो गई है और विज्ञानी मानव विकास रूपी पत्थर उसके मांद में फेंक कर उसको छेड़ रहा है।
इकोलॉजिकल चक्र में छोटे से छोटे और बड़े से बड़े पादप और जीव जंतु अहम भूमिका निभाते हैं। कई हजार करोड़ वर्षों में अगिनत झंझावातों को सहकर प्रकृति ने सम्पूर्ण ब्रह्मांड को व्यवस्थित किया है। पिछले सौ सालों में विज्ञान का क्रमिक विकास से एक तरफ जहाँ अनेक उत्साहवर्धक आविष्कार हुए हैं, वहीं दूसरे तरफ और अधिक घातक हथियार बनाने की भी होड़ लग गयी है।
कम लागत पर अधिक उत्पादन हासिल करने की योजना के साथ विज्ञान का पहला कदम औद्योगिक विकास की ओर उठा। बड़े-बड़े कल कारखाने लगाए जाने लगे। मजदूर की आवश्यकता कम होने लगी। कारखानों ने पर्यावरण का भयावह दोहन आरम्भ किया। कारखानों से उत्पन्न कचरा की समस्या सुरसा की भांति मुँह बाये खड़ी हो गयी। कुछ कचरा नदियों में बहाया गया, कुछ कचरा हवा में उड़ाया गया तो कुछ कचरा को जमीन पर उड़ेला जाने लगा। परमाणु भट्ठियों का कचरा तो और भी भयावह है। कचरों की विषाक्तता ने पर्यावरण को विषाक्त कर दिया। इस विषाक्तता से होने वाले नुकसान का अंदाज़ा प्रतिवर्ष होने वाले चिकित्सा खर्च से लगया जा सकता है। वैज्ञानिकों की मानें तो बढ़ते पर्यावरण प्रदूषण के करण पृथ्वी और तेजी से गरम होगी। ग्लेशियर पिघल जाएंगे, समंदर का स्तर 20 मीटर तक ऊपर उठ कर कई बड़े शहरों को लील जाएगा। प्रकृति की समसामयिक चेतावनी को हम हमेशा से नजर अंदाज करते रहे हैं। सुनामी, अम्फान, विसर्ग, कोलेरा, हैज़ा… और अब कोरोना से मौत। यह प्रकृति की समसामयिक चेतावनी नहीं तो और क्या है? कोरोना ने लाखों लोगों को खून का रोना रुलाया है। उसका कहर बढ़ता ही जा रहा है। एक अदृश्य शूक्ष्म जीव के कारण वृहद लॉक डाउन है। हम घरों में कैद हैं, और प्रकृति अपने मूल स्वरूप में वापस आने लगी है। प्रदूषण घट रहा है। पशु पंछी राहत महशूस कर रहे हैं। प्रदूषण का स्तर घटने से पूरा पारिस्थितिकी तंत्र मुस्कुरा उठा है।
प्रकृति ने हमें तर्क शक्ति देकर अन्य प्राणियों से सर्वोपरि इस लिए बनाया ताकि हम अन्य प्राणियों और प्रकृति की रक्षा कर सकें। शिक्षित और आधुनिक मानव कहलाने में हमें गर्व की अनुभूति होती है। एक ओर आधुनकि मानव मंगल ग्रह पर जीवन की खोज में लगा है तो दूसरी ओर माँ के गर्भ में पल रहे नन्हें हाथी की गर्भवती माँ को बारूद भरा फल खिलाकर निर्मम हत्या कर देता है। वन्य प्राणियों के घर (जंगलों) को हमने ही अपने विकास के लिए उजाड़ा है। आज महज 5 प्रतिशत रिज़र्व भू-भाग पर उन्हें जीवन भर के लिए लॉक डाउन कर रख दिया गया है। महज कुछ दिनों के लॉक डाउन से हम व्याकुल हो उठे हैं। जरा सोचिए, वन्य जीव के भूख प्यास मिटाने खातिर अपने घर से बाहर निकलने पर उनको ऐसी वीभत्स सजा? छी छी। लानत है ऐसे सभ्य समाज को। धरती पर पहला अधिकार वन्य जीवों का ही है क्योंकि धरती पर वे हमसे पहले आये हैं। हम उनके निवास उजाड़ कर अपना आशियाना बनाये हैं।
हमें पर्यावरण के प्रति और सचेत हो जाना चाहिए। जब तक पेड़ पौधे और जीव जंतुओं का अस्तीत्व सलामत रहेगा तभी तक हमारा अस्तीत्व भी सलामत है। अतः पर्यावरण संरक्षण हम सब की संयुक्त जिम्मेदारी है। आइए पेड़ लगाएं पर्यावरण बचाएं। पर्यावरण दिवस की शुभकामनाएं।

मनोज कुमार
एम एससी (पर्यावरण विज्ञान)
विकास अधिकारी
भारतीय जीवन बीमा निगम, गिरिडीह 

 

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