महामारी अधिनियम 1897 और महामारी रोग (संशोधन) अध्यादेश 2020

महामारी अधिनियम 1897 का मुख्य उद्देश्य किसी भी महामारी को फैलने से रोकना और उससे बचाव करना है जब केंद्र सरकार या राज्य सरकार को यह लगता है कि देश के किसी हिस्से में या किसी राज्य में महामारी फैल चुकी हैं या फेलने की आशंका है और वर्तमान कानून व्यवस्था इसे नियंत्रण में रखने में नाकाफी हैं तो सरकार यह अधिनियम लागू करके उस महामारी से निपटने के लिये बेहतर नियम तैयार कर सकें।

इस महामारी अधिनियम 1897 के दूसरे खंड के अनुसार अगर कोई महामारी से पीड़ित व्यक्ति रेल, हवाई जहाज या जल-मार्ग के द्वारा यात्रा कर रहें है तो बीच रास्ते मे उन्हें उतारकर उनका इलाज करवाया जा सकता हैं और अगर जरूरत पड़ी तो वो मरीज को जब तक वो ठीक ना हो उपचार केंद्र पर रखा जा सकता हैं। जबकि इस अधिनियम के भाग 3 के अनुसार अगर कोई भी केंद्र के आदेश को नही मानता हैं तो उन्हें भारत दंड संहिता के अनुसार दंड देने का भी प्रावधान हैं।

सबसे पहले इस अधिनियम को 1890 में लागू किया गया था जब बॉम्बे प्रेसीडेंसी में प्लेग फैल चुका था लेकिन ब्रिटिश सरकार ने इस कानून का गलत फायदा उठाया और जबरन लोगों को जेल में बंद करना शुरु कर दिया। वर्ष 2009 में जब पुणे में स्वाइन फ्लू फैला था तो पुणे में इस अधिनियम का भाग 2 लागू किया गया था, इसके अलावा 2015 में चंडीगढ़ में डेंगू और मलेरिया से निपटने के लिए इस अधिनियम को लागू किया गया था। 1897 यानी Epidemic Diseases Act 1897 के खंड 2 जो अभी corona में अभी लागू है।

22 अप्रैल, 2020 को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने देश के स्वास्थ्य कर्मचारियों के खिलाफ हमलों के लिए कड़ी सजा का प्रावधान करने के लिए महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन करने के लिए एक अध्यादेश को मंजूरी दी। उसी दिन (22 अप्रैल, 2020) राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने इस अध्यादेश पर हस्ताक्षर करते हुए इसे अपनी मंजूरी दी और यह कानून बन गया। गौरतलब है कि संविधान के अंतर्गत, अनुच्छेद 123 के तहत भारत के राष्ट्रपति को, संसद के सत्र में न होने की स्थिति में एक अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है।

एक अध्यादेश पर राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ ही वह संसद द्वारा बनाए गए कानून के बराबर मूल्य का हो जाता है। अब, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ महामारी रोग अधिनियम, 1897 में संशोधन किया जा चुका है और वह तत्काल प्रभाव से लागू हो चुका है और यह अध्यादेश अब कम से कम 6 महीने तक अवश्य लागू रहेगा।

जोड़ी गयी परिभाषाएं

अध्यादेश के जरिये ‘हिंसा की गतिविधि’ (Act of Violence), ‘स्वास्थ्य सेवा कर्मियों’ (Healthcare Service Personnel), ‘संपत्ति’ (Property) को परिभाषित किया गया है और इसे एक नई धारा – ‘1A’ के अंतर्गत रखा गया है। हिंसा की गतिविधि (Act of Violence): इसे महामारी के समय में कार्य कर रहे स्वास्थ्य सेवा कर्मियों (Healthcare Service Personnel) के सम्बन्ध में परिभाषित किया गया है। इसके अंतर्गत स्वास्थ्य सेवा कर्मियों को तंग (Harass) करने वाले, अपहानि (Harm), क्षति (Injury), नुकसान वाले, अभित्रास (Intimidation) पहुँचाने या जीवन पर खतरे पैदा करने वाले कृत्य शामिल होंगे। इसके अलावा स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के कर्तव्य के निर्वहन (Discharge of Duty) के दौरान (क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट या अन्यथा कहीं और) किसी प्रकार की बाधा (Obstruction) पहुँचाना भी हिंसा की गतिविधि (Act of Violence) के अंतर्गत आएगा।

यही नहीं, स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की अभिरक्षा (Custody) में या उससे सम्बंधित संपत्ति या दस्तावेज को हानि (Loss) पहुँचाना या नुकसानग्रस्त (Damage) करना भी हिंसा की गतिविधि के अंतर्गत आएगा

स्वास्थ्य सेवा कर्मियों (Healthcare Service Personnel): इसके अंतर्गत, सार्वजनिक तथा नैदानिक स्वास्थ्य सेवा प्रदाता, जैसे डॉक्टर, नर्स, पैरामेडिकल कार्यकर्त्ता तथा सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता शामिल हैं।

यही नहीं, अध्यादेश के अनुसार, स्वास्थ्य सेवा कर्मियों की परिभाषा में ऐसे सभी लोगों को भी शामिल किया गया है, जिन्हें इस महामारी के प्रकोप को रोकने या इसके प्रसार को रोकने के लिये अधिनियम के तहत अधिकार प्राप्त हैं।

इसके अलावा, आधिकारिक गजट में राज्य सरकार द्वारा नोटिफिकेशन के जरिये किसी अन्य वर्ग के व्यक्तियों को भी इसके अंतर्गत शामिल किया जा सकता है।

संपत्ति (Property): इसके अंतर्गत, एक क्लिनिकल इस्टैब्लिशमेंट, महामारी के दौरान मरीजों के लिए करन्तीन (Quarantine) या आइसोलेशन के लिए चिन्हित की कोई जगह, एक मोबाइल मेडिकल यूनिट, कोई अन्य संपत्ति जिससे एक स्वास्थ्य सेवा कर्मी का महामारी के दौरान सीधे तौर पर लेने देना हो, शामिल हैं।

हिंसा पर रोक और सजा का प्रावधान

अध्यादेश के अनुसार इस अधिनियम में जोड़ी गयी एक नई धारा ‘2A’, स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के खिलाफ हिंसा को और संपत्ति को नुकसान पहुँचाने को प्रतिबंधित करती है। धारा 3 (2) के तहत, एक स्वास्थ्य सेवा कर्मी के खिलाफ हिंसा की गतिविधि करने वाले व्यक्ति या उस कृत्य का दुष्प्रेरण करने वाले व्यक्ति या संपत्ति (Property) को नुकसान पहुँचाने वाले या उस कृत्य का दुष्प्रेरण करने वाले व्यक्ति के लिए कम से कम 3 महीने की सजा का प्रावधान है।

हालाँकि इस सजा को 5 वर्ष तक कैद तक बढाया जा सकता है और 50,000 रुपए से लेकर 200000 रुपए तक जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि यदि स्वास्थ्य सेवा कर्मी को भारतीय दंड संहिता की धारा 320 के मायनों में घोर उपहति (Grievous Hurt) कारित की गयी है तो सजा 6 माह से 7 वर्ष तक कैद हो सकती है और जुर्माना 100000 रुपए से 500000 रुपए तक का लगाया जा सकता है। अध्यादेश के अनुसार [धारा 3E (1)], सजा के अतिरिक्त एक अपराधी को पीड़ित को मुआवजे का भुगतान भी (अदालत द्वारा तय किया गया) करना होगा। इसके अलावा, संपत्ति के नुकसान के मामले में, मुआवजा नुकसानग्रस्त संपत्ति के बाज़ार मूल्य का दोगुना होगा [धारा 3E (2)]।

कुछ अन्य महत्वपूर्ण बातें

इस अध्यादेश के जरिये हिंसा की गतिविधि को संज्ञेय और गैर-जमानती अपराध माना गया है [धारा 3A (i)]। वहीँ, मामले का अन्वेषण एक ऐसे अधिकारी द्वारा किया जायेगा जो इंस्पेक्टर रैंक का या उससे ऊपर की रैंक का हो [धारा 3A (ii)]।

अध्यादेश के अनुसार स्वास्थ्य सेवा कर्मी के खिलाफ अपराधों की पुलिस जांच 30 दिनों के भीतर (एफआयआर होने से) खत्म हो जानी चाहिए [धारा 3A (iii)], और यह कि मुकदमा एक साल के भीतर पूरा होने पर जोर दिया जाना चाहिए और जहाँ यह 1 साल के भीतर नहीं ख़त्म हो रहा वहां जज को इस बाबत कारण लिखने होंगे [धारा 3A (iv)]।

साभार : लाइव लॉ

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