छठी जेपीएससी की गड़बड़ियों पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर ‘न्यायिक जाँच आयोग’ गठन करने की मांग

संयुक्त असैनिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा 2016 (छठी जेपीएससी), (Adv. No.-23/2016) में कई गड़बड़ियां हुईं हैं. उन गड़बड़ियों/त्रुटियों की जाँच के लिए रांची के अजय चौधरी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है और एक “न्यायिक जाँच आयोग” का गठन करने की मांग की है. यदि जाँच में किसी भी तरह की गड़बड़ी सामने आती है तो अजय चौधरी ने छठी जेपीएससी परीक्षा रद्द करने की मांग की है. अजय चौधरी के उस पत्र को यहाँ पूरा का पूरा प्रकाशित किया जा रहा है. पत्र के साथ उन्होंने 14 अनुलग्नक लगाया है, जो इंडियन माइंड के पास भी मौजूद है. किसी भी पदाधिकारी को, किसी भी अभ्यर्थी को या अन्य किसी को भी उन अनुलग्नकों को देखना हो तो इंडियन माइंड से या फिर सीधे अजय चौधरी से सम्पर्क करें. इस पत्र पर या जेपीएससी के कार्यकलापों पर किसी भी व्यक्ति को किसी भी प्रकार का अपना पक्ष (विरोध या सहमति) रखना हो तो  इंडियन माइंड के मोबाइल नंबर 7004153199 पर सम्पर्क करें या indianmind.in@gmail.com पर मेल करें. — सम्पादक

पत्र को यहाँ पढ़ें…

 

सेवा में,                                                                                                                              दिनांक:23/05/2020

माननीय प्रधानमंत्री महोदय  ,

भारत ,

विषय :-माननीय सर्वोच्च न्यायालय, झारखंड उच्च न्यायालय एवं झारखंड सरकार के आदेश का उल्लंघन करते हुए जेपीएससी (झारखंड लोक सेवा आयोग) द्वारा संयुक्त असैनिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा 2016(Adv. No.-23/2016) के प्रकाशित रिजल्ट में व्याप्त त्रुटियों से  अवगत कराने के संबंध में।

महोदय,

उपरोक्त विषयक संबंध सविनय निवेदन करना है कि झारखण्ड लोक सेवा आयोग के द्वारा दिनांक 21.04.2020 को संयुक्त असैनिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा-2016 (छठी जेपीएससी) का फाइनल रिजल्ट जारी किया जाता है, जिसमें कुल 326 अभ्यर्थियों का चयन किया गया है। लेकिन, जब अभ्यर्थियों के द्वारा अपना मार्क्स-शीट देखा गया तो कई त्रुटियां मौजूद थीं.

  1. जेपीएससी ने मुख्यपरीक्षा के क्वालिफाइंग पेपर-1 (हिन्दी व अंग्रेजी) के मार्क्स को जोड़कर मेरिट लिस्ट जारी किया है, जबकि100 अंकों वाली हिन्दी व अंग्रेजी की परीक्षा में अभ्यर्थियों को केवल 30 मार्क्स लाना अनिवार्य था। इसके प्राप्तांकों को मेरिट लिस्ट में जोड़ा नहीं जाता है। जेपीएससी ने पहली से लेकर पांचवी परीक्षा तक कभी भी ऐसा नहीं किया गया है और ना ही झारखंड सरकार की ओर से क्वालीफाइंग पेपर के प्राप्तांक को फाइनल मेरिट लिस्ट में जोड़ने का कोई भी आदेश नहीं था.

महोदय, जेपीएससी के द्वारा अपने वेबसाइट पर मुख्य परीक्षा का जो सिलेबस जारी किया गया है उसमे Paper-I के बारे में यह स्पष्ट कहा गया है किIt will be only a qualifying paper in which out of 100 (combined both Hindi & English) every candidate will have to secure only 30 marks. Thus inclusion of 50 marks General English component will not adversely impact the changes of students from Hindi/Regional Language background. वही सिलेबस में Paper-II के बारे में कहा गया है कि –This paper will be set for a maximum of 150 marks and marks obtained in this paper shall be counted for preparation of the Gradation-List of the Main Examination. इसके अलावा परीक्षा के विज्ञापन में भी प्रथम पत्र  को क्वालिफाइंग ही माना गया है।

महोदय, यूपीएससी, बीपीएससी व अन्य राज्य सेवा आयोग भी क्वालिफाइंग विषय के प्राप्तांक को फाइनल मेरिट लिस्ट में नहीं जोड़ते हैं।

विदित हो कि झारखंड सिविल सेवा के लिए गठित वी. एस. दूबे समिति की रिपोर्ट आने पर जेपीएससी ने 02 अप्रैल 2013 को एक बैठकर यह निर्णय लिया था कि-   मुख्य परीक्षा का प्रथम पत्र क्वालिफाइंग रहेगा तथा इसके प्राप्तांकों को मेरिट लिस्ट में जोड़ा नहीं जायेगा। जेपीएससी की बैठक में पेपर-I के बारे में कहा गया कि– “It will be only a qualifying paper in which out of 100 (combined both Hindi & English) every candidate will have to secure only 30 marks. Thus inclusion of 50 marks General Englishcomponent will not adversely impact the changes of students from Hindi/Regional Language background.उसी में आगे कहा गया कि100 marks Language paper of Mains be of qualifying natureonly in which a candidate shall secure minimum 30 marks out of the Combined Hindi & English (10th Standard) paper of 100 marks.

महोदय, स्पष्ट है कि प्रथम पत्र की परीक्षा का उदेश्य हिन्दी और अंग्रेजी में अभ्यर्थियों की कार्य क्षमता का परीक्षण है न कि कुल प्राप्तांकों हेतु अंक स्कोर करवाना है। साथ ही, Only- सिर्फ शब्द का प्रयोग यह भी स्पष्ट करता है कि यह मात्र क्वालिफाइंग पेपर था। आगे यह उल्लेख है कि अंग्रेजी भाषा के 50 अंक के होने से यह हिन्दी अथवा क्षेत्रीय भाषा के अभ्यर्थियों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालेगा। परन्तु जैसे ही आप इसके अंकों को प्राप्तांकों में जोड़ देते हैं तो सरकार द्वारा अधिसूचित विज्ञापन में उक्त उल्लेखित आश्वासन का कोई अर्थ ही नहीं रह जाता है।

  1. महोदय, छठी जेपीएससी के विज्ञापन के कंडिका 13 में प्रारंभिक एवं मुख्य परीक्षा मैं सभी कोटी के अभ्यार्थियों के लिए न्यूनतम अहर्तान्क तय किया गया है इसमें आगे लिखा है कि मुख्य परीक्षा के प्रथम पत्र (सामान्य हिन्दी एवं सामान्य अग्रेजी) में सभी कोटि के उम्मीदवारों को 30 अंक प्राप्त करना अनिवार्य होगा तथा अन्य सभी विषयों (Paper-II, III, IV, V & VI) में UNR के लिए 40%, BC-I के लिए 34%, BC-II के लिए 36.5% तथा SC/ST/mahil के लिए 32% न्यूनतम अर्हतांक प्राप्त करना आवश्यक होगा। लेकिन मुख्य परीक्षा के रिजल्ट में जो भी अभ्यर्थी Paper-I में30% से कम अंक प्राप्त किये उन्हें तो असफल घोषित कर दिया गया, परन्तु Paper-II, III, IV, V & VI में न्यूनतम अर्हतांक से कम अंक प्राप्त करने वाले कई अभ्यर्थी को पास (Pass)कर दिया गया। साक्षात्कार के बाद ऐसे कई अभ्यर्थी अंतिम रूप से चयनित कर माननीय सर्वोच्च न्यायालय के आदेश  (वाद संख्या :  Tanya malik (supra) SLP No. 764, 831…../2018) , माननीय झारखंड उच्च न्यायालय (वाद संख्या: Wp(s) – 5046/2018) का उल्लंघन किया गया। यथा – क्रमांक 68015246, श्रेणी – UNR, इनका चयन वित्त सेवा के लिए किया गया जबकि इनको पेपर 5 मात्र 60 मार्क्स प्राप्त है। जबकि इनको विज्ञापन नियम अनुसार पास करने के लिए 80 मार्क्स चाहिए था ।

महोदय, उल्लेखनीय है कि जेपीएससी के द्वारा प्रारम्भिक परीक्षा के दौरान अलग-अलग विषयों में न्यूनतम अर्हतांक से कम अंक प्राप्त करनेवाले कई अभ्यर्थियों को असफल घोषित किया गया थाप्रारम्भिक परीक्षा के असफल अभ्यर्थियों द्वारा (गौरव प्रियदर्शी तथा अन्य) उक्त मामले को माननीय उच्चन्यायालय (Wps-5046/2018) में ले जाया गया था, जहाँ न्यायालय ने अभ्यर्थियों की याचिका पर सुनवायी करते हुए उनके केस को खारिज कर दिया। न्यायालय ने अपने निर्णय में अलग-अलग विषयों में न्यूनतम अर्हतांक को जरूरी बताया।

उपरोक्त वाद में जेपीएससी के द्वारा अपने लिखित जवाब में कहा गया कि- (Para-8) …….“It is very much clear that as per the syllabus mentioned in the advertisement two papers were prescribed for preliminary test, i.e. General Studies Paper-I and General Studies Paper-II having in different subject and the candidates had to obtain 40 Marks in each paper and those, who have secured minimum qualifying marks were only considered and declared successful in the Preliminary Test Examination……”

माननीय उच्च न्यायालय द्वारा अपने निर्णय में कहा गया कि-(Para-9)

…..” Further, the Hon’ble Apex Court in para-23 of the judgment passed in case of Tanya Malik (supra) has held that :-

“23. Coming to question whether minimum cut-off marks in the written examination be relaxed from 40% to 33% and whether we should interfere on the ground that as a person who has obtained the highest marks, could not clear one of the paper by narrow margin of one marks has not been called for interview and as he could not clear the minimum percentage in one of the written paper and persons having lesser marks in aggregate have been called for interview.In our opinion minimum passing marks in each of the paper could have been prescribed and that is absolutely necessary so as to adjudge the academic knowledge in various subjects. Merely by scoring highest marks in general knowledge in other subject, civil and criminal law was minimum passing marks had been prescribed and fixation of 40% was quite reasonable and proper and it would be not proper for this Court to interfere in the same.We find no fault in prescribing the minimum passing marks for written papers. It may happen in any examination that a person who is having better aggregate may not fair well in one of the papers and may be declared ‘failed’. That cannot be a ground to order relaxation or to doubt the correctness of the evaluation process. When we were shown the marks of a candidate who secured highest marks, it became apparent that the performance of the candidate in paper general knowledge and language was far better as compared to the to the performance in civil and criminal papers. Thus when a single examine; has done valuation, same yardstick has been applied to all the candidates. We find no ground to interfere on the various ground urged by the petitioners”.

3. महोदय, जेपीएससी द्वारा SC/ST/BC-I/BC-II श्रेणीके वैसे अभ्यर्थी जो फाइनल मेरिट लिस्ट में 600 व उससे अधिक अंक प्राप्त कर UNR श्रेणी में चयनित हुए, उनके प्राथमिकता वाले सेवा क्षेत्र  को दरकिनार कर नियम विरुद्ध व सुप्रीम कोर्ट के आदेश के विरुद्ध फाइनल मेरिट लिस्ट जारी किया गया है। यथाSC श्रेणी के क्रमांक- 68020363 तथा 68007752 जिनका कुल प्राप्तांक क्रमशः 626 तथा 611 है, का चयन क्रमशः वित सेवा एवं सूचना सेवा के लिए  किया गया, वही SC श्रेणी के क्रमांक- 68020843 तथा 6801889 जिनका कुल प्राप्तांक क्रमशः 584 तथा 576 है, कम अंक लाने पर भी उनका चयन प्रशासनिक सेवा के लिए कर दिया गया। उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट के संवैधानिक पीठ के पांच जजों के बेंच ने Union of India Vs. Ramesh Ram & Ors. ( CA- 4310-4311/2010) वाद में आदेश दिया है कि “यदि कोई ST/SC/OBC अभ्यर्थी अपनी योग्यता के आधार पर अंतिम रूप से अनारक्षित श्रेणी (UNR) में चयनित होता है, परंतु अपनी प्राथमिकता के अनुरूप सेवा प्राप्त नहीं करता है तो वह स्वतः अपनी श्रेणी में प्राथमिकता की सेवा में ही उसका चयन  होना चाहिए।” सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश का भी उल्लंघन करते हुए जेपीएससी ने रिजल्ट प्रकाशित किया है ।

  1. महोदय, SC/ST/BC1/BC2 कोटे के कई अभ्यार्थी जो जेपीएससी द्वारा अनारक्षित वर्ग (UNR)के तय कट ऑफ मार्क्स 600 से ज्यादा अंक प्राप्त करने के बाद भी की यह भी उन्हें अपने ही श्रेणियों (Categories) में रख दिया गया है।यहां भी जेपीएससी ने सर्वोच्च न्यायालय और झारखंड सरकार के आरक्षण नियमावली के संदर्भ में दिए गए आदेश एवं निर्देश का उल्लंघन करते हुए रिजल्ट जारी किया है । यथा – SC श्रेणी प्रशासनिक सेवा के लिए चयनित क्रमांक 68020795 का कुल प्राप्तांक 602 है , SC श्रेणी में ही पुलिस सेवा के लिए चयनित क्रमांक 68058976 का कुल प्राप्तांक 608 है । जबकि अनारक्षित वर्ग (UNR) का कटऑफ मार्क्स 600 ही है ।
  1. महोदय, जेपीएससी के द्वारा अब तक तीन बार प्रारंभिक परीक्षा (पीटी) का संशोधित रिजल्ट जारी किया जा चुका है, लेकिन किसी भी बार प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण के नियमों का पालन नहीं किया गया। प्रारंभिक परीक्षा (PT.) के रिजल्ट में Reserve Category के जिन अभ्यर्थियों ने ऊपरी उम्र सीमा, अनुभव, शैक्षणिक योग्यता, लिखित परीक्षा में बैठने के अवसरों की संख्या का “लाभ नहीं लिया” और वे General Category के Cut-off-marks या उससे अधिक अंक प्राप्त किये तो उन्हें General Category में रखने के बजाय अपने ही श्रेणीयों (Category)में रख दिया गया।

विदित है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने अपने इंदिरा साहनी वाद में स्पष्ट आदेश दिया था कि है कि जनरल कैटिगरी सभी में सभी वर्ग के लोगों का चयन मेरिट के आधार पर होगा इस कैटेगरी में सभी वर्ग के लोग अपनी योग्यता के आधार पर आ सकते हैं। केंद्र सरकार एवं झारखंड राज्य सरकार ने भी इस संदर्भ में स्पष्ट निर्देश जारी किया हुआ है लेकिन जेपीएससी ने प्रकाशित रिजल्ट में इसका घोर उल्लंघन किया है।

जेपीएससीने अपने विज्ञापन के 08 नंबर पॉइंट में यह स्पष्ट कहा है कि आरक्षण के संबंध में कार्मिक, प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा, झारखण्ड सरकार के पत्रांक-12165 दिनांक- 31.10.2011 के प्रावधान लागू होंगे। साथ ही, आयोग ने विज्ञापन के 12 नंबर पॉइंट में यह भी कहा है कि “प्रारंभिक परीक्षा के आधार पर कोटिवार रिक्तियों की संख्या के 15 गुणा उम्मीदवारों को मुख्य परीक्षा के लिए चुनाव (shortlisting) किया जायेगा। लेकिन, जेपीएससी ने अपने पीटी के रिजल्ट में विज्ञापन में उल्लेखित आरक्षण के नियमों व 15 गुणा रिजल्ट की शर्तों का पालन नहीं किया।

महोदय, वर्ष 2018 में झारखण्ड विधानसभा में प्रश्न उठने के बाद तत्कालीन सरकार द्वारा माननीय मंत्री श्री अमर कुमार बाउरी जी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था और कार्मिक विभाग के पत्रांक–731 dt.-24.01.2018 के द्वारा 29 जनवरी 2018 से प्रारंभ होने वाली मुख्य परीक्षा को यह कहकर स्थगित कर दिया गया था कि जेपीएससी ने आरक्षण के नियमों तथा 15 गुणा रिजल्ट की शर्तो का पालन नहीं किया है।

महोदय, उल्लेखनीय है कि वर्ष 2000 में राज्य के गठन के बाद झारखण्ड सरकार द्वारा बिहार असैनिक  सेवा (कार्यपालिका शाखा) और बिहार कनीय असैनिक सेवा (भर्ती) नियमावली 1951 को अंगीकृत किया गया। पुनः उपर्युक्त नियमावली को झारखण्ड सरकार के कार्मिक प्रशासनिक सुधार तथा राजभाषा विभाग के अधिसूचना संख्या-6184 दिनांक 09/11/2002 के द्वारा झारखण्ड लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित प्रारम्भिक एवं मुख्य परीक्षा हेतु अनुमोदित किया गया है तथा इसी नियमावली के आधार पर बिहार राज्य की भांति झारखण्ड राज्य में भी आरक्षण नियमों का पालन चौथी सिविल सेवा परीक्षा तक किया गया। परन्तु पंचम सिविल सेवा परीक्षा से प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण के प्रावधान को समाप्त कर दिया गया। जबकि इस संबंध में राज्य सरकार के द्वारा आयोग को कोई दिशा-निर्देश नहीं दिया गया था। इस बात की पुष्टि अमर कुमार बाउरी समिति ने भी की है। अब भी बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा प्रारंभिक परीक्षा में आरक्षण की व्यवस्था को बहाल रखा गया है, जिसकी पुष्टि RTI के द्वारा होती है।

महोदय, जेपीएससी द्वारा मुख्य परीक्षा के आयोजन में भी कई तरह की अनियमितता बरती गयीजेपीएससी के पूर्व सचिव जगजीत सिंह अपने पुत्र के अभ्यर्थी होने की बात को एक लंबे समय तक सरकार से छुपाये रखते है। जेपीएससी में सहायक के पद पर कार्यरत लगभग 16 कर्मी ऐसे थे जिन्होंने प्रारंभिक परीक्षा पास की थी। लेकिन वे शुरू से लेकर अंत तक मुख्य परीक्षा के फॉर्म की स्क्रूटनी से लेकर अन्य सभी कार्यों को निपटा रहे थे। मुख्य परीक्षा के दौरान विभिन्न परीक्षा केन्द्रों पर परीक्षकों द्वारा लगातार अपने मोबाइल फ़ोन का इस्तेमाल किया जा रहा था। उनके द्वारा आधा घंटा पहले क्लास रूम में जो प्रश्न पत्र लाया जाता था, वे सील नहीं होते थे। अभ्यर्थियों को जो प्रश्न पत्र मिलता था उसके ऑब्जेक्टिव उत्तरों में पहले से ही पेंसिल से टिक मार्क लगा होता था। महोदय, वर्ष 2016 में जेपीएससी के द्वारा मुख्य परीक्षा के लिए 6103 प्रश्न पत्र प्रिंट करवाए गए थे जिसे बाद में ट्रेज़री से बाहर निकाल कर 34634 अभ्यर्थियों के लिए ज़ेरॉक्स या री-प्रिंट करवाया गया, जबकि नियमतः प्रश्नपत्र ट्रेज़री में रखे जाने के बाद उसका सील सीधे परीक्षा सेन्टर में खोला जाता है।

अतः महोदय से नम्र निवेदन यह है कि संयुक्त असैनिक सेवा प्रतियोगिता परीक्षा 2016, (Adv. No.-23/2016) में हुई उपरोक्त त्रुटियों की जाँच के लिए एक “न्यायिक जाँच आयोग” का गठन किया जाये। यदि जाँच में किसी भी तरह की गड़बड़ी सामने आती है तो कृप्या छठी जेपीएससी परीक्षा रद्द करने का विचार हो।

 

विश्वासभाजन

हा /- अजय चौधरी

मो.  (9931554535)

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