जेपीएससी के विवादों की फेहरिस्त में सामने आ रहा एक और मामला

रांची : झारखंड राज्य का गठन 15 नवंबर, 2000 को बिहार से अलग कर किया गया। उसके बाद झारखंड के गवर्नर द्वारा भारत के संविधान के अनुच्छेद 315 के प्रावधानों के तहत झारखंड लोक सेवा आयोग (JPSC) का गठन किया गया। झारखंड लोक सेवा आयोग को राज्य में सरकारी पदों में भर्ती के लिए सुयोग्य उम्मीदवारों की अनुशंसा करने के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार बनाया गया। सीधे कहें तो, झारखंड लोक सेवा आयोग का मुख्य उद्देश्य राज्य में किसी भी सरकारी पदों के लिए उम्मीदवारों के चयन के लिए लिखित प्रतियोगी परीक्षा और साक्षात्कार आयोजित करना है। जेपीएससी का गठन वर्ष 2002 में हुआ और प्रथम जेपीएससी परीक्षा का विज्ञापन 2003 में प्रकाशित किया गया। तब से 2020 तक में प्रशासनिक पदाधिकारियों की प्रत्येक वर्ष ली जाने वाली खुली प्रतियोगिता परीक्षा इस संस्था ने मात्र छह बार ही ले पायी है, जो सभी परीक्षाएं किसी ने किसी विवाद में फंसती रहीं। इन 18 वर्षों में कई सरकारें आयीं और गयीं, लेकिन एक भी परीक्षा निर्विवाद नहीं हो पायी। जेपीएससी की परीक्षाओं की गड़बड़ियों को लेकर गिरिडीह जिला सांख्यिकी पदाधिकारी राजेश पाठक ने महामहिम राष्ट्रपति का ध्यान अपने विचार और सुझाव की ओर आकृष्ट किया है। इसे पढ़ने के लिए नीचे दिये लिंक पर क्लिक करें।

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अब ताजा मामला छठी जेपीएससी परीक्षा की है। इसमें भी अभ्यथियों ने नियम को ताक पर रखकर परिणाम घोषित करने का आरोप लगाया है। इस संबंध में रांची के रहने वाले अजय चौधरी ने प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा है। इसे पढ़ने के लिए नीचे दिये लिंक पर क्लिक करें।

छठी जेपीएससी की गड़बड़ियों पर प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर ‘न्यायिक जाँच आयोग’ गठन करने की मांग

जेपीएससी के विवादों की फेहरिस्त में एक और मामला जुड़ रहा है और वह है जेपीएससी की ओर से ली गयी छठी सिविल सेवा परीक्षा के दौरान उससे संबंधित विभिन्न कार्यों को ब्लैक लिस्टेड कंपनी से करवाना। जेपीएससी के अभ्यर्थी रांची के विकास कुमार, प्रिंस कुमार, राजकुमार मिंज, सुनील सुमन और गिरिडीह के प्रशांत कुमार राणा के अलावा अन्य कई अभ्यर्थियों ने उस ब्लैक लिस्टेड कंपनी जिसका नाम मैसर्स विनसिस (BINSYS) टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड है, पर कई गंभीर आरोप लगाये हैं। कंपनी ब्लैक लिस्टेड है, इसका प्रमाण उपरोक्त अभ्यर्थियों ने ‘इंडियन माइंड’ को उपलब्ध कराया है।
अभ्यर्थियों का कहना है मैसर्स विनसिस (BINSYS) टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड को जेपीएससी ने सर्विस प्रोवाइडर के रूप में रखा है। वर्तमान में विनसिस के डायरेक्टर अरुण कुमार का संबंध एक अन्य सर्विस प्रोवाइडर कंपनी ICN प्राइवेट लिमिटेड से भी है, जिसके डायरेक्टर स्वयं सुनील कुमार धवन हैं।
ICN एवं सेंट्रल सिलेक्शन बोर्ड कांस्टेबल रिक्रूटमेंट बिहार पटना के बीच 2017-18 एवं 2018 -19 हेतु कांस्टेबल भर्ती के परीक्षा से संबंधित कार्यों को पूर्ण करने हेतु इकरारनामा किया गया था। एग्रीमेंट आई सी एन के तरफ से अरुण कुमार (director vinsys) ने किया था, लेकिन परीक्षा से संबंधित विभिन्न कार्यों में लापरवाही, धोखाधड़ी एवं अन्य प्रकार की अनियमितताएं बरते जाने के कारण सुनील कुमार धवन के खिलाफ पटना के शास्त्री नगर थाने में आईपीसी की धारा 409 एवं 420 के तहत मामला दर्ज किया गया था, जिसका एफ आई आर ( 733/2019) दर्ज किया गया।

यहां देखें एफआईआर की कॉपी…

 

इस मामले में जब सुनील कुमार धवन ने पटना हाई कोर्ट में बेल हेतु एप्लीकेशन डाला तो इसकी सुनवाई के दौरान बेल का विरोध सरकारी वकील एवं सीएसबीसी के वकील ने जोरदार तरीके से किया। इनके द्वारा कोर्ट से बेल नहीं दिए जाने का आग्रह किया गया, क्योंकि सीएसबीसी के वकील द्वारा इस कंपनी पर लगभग 140000000 (14 करोड़) रूपये बकाया होने का एवं अन्य गंभीर आरोप लगाया गया। दूसरे पक्ष के वकील ने सुनील कुमार धवन के खराब स्वास्थ्य का हवाला दिया गया। अंततः दोनों पक्षों की बातें सुनने के बाद सुनील कुमार धवन को 4 दिन में 3,50 करोड़ रुपए जमा करने के एवं अन्य कई कठोर शर्त्ताें के साथ बेल दिया गया।
अरुण कुमार पर सीएसबीसी के वकील द्वारा उनके द्वारा निर्गत चेक बाउंस होने एवं कई गंभीर मामलों का न्यायालय में लंबित होने का भी आरोप लगाया गया। आईसीएन के डायरेक्टर सुनील कुमार धवन पूर्व में विनसिस के डायरेक्टर भी रह चुके हैं एवं अरुण कुमार भी आईसीएल से संबंधित रहे हैं। इसलिए स्पष्ट है कि 409 एवं 420 में लिप्त रहने वाले डॉयरेक्टर को जेपीएससी जैसी संस्था में कार्य देना संदेह पैदा करता है। टेंडर के माध्यम से विनसिस का चयन नहीं किया जाना भी एक गंभीर मामला है।
बिनसिस ने सैल दुर्गापुर स्टील प्लांट के लिए 2014 में एग्जाम कंडक्ट किया था, लेकिन इस कार्य में लापरवाही बरतने के आरोप में इस कंपनी के खिलाफ कोलकाता हाई कोर्ट में केस दर्ज किया गया था।
इधर, सूत्रों से यह भी पता चला है कि इस कंपनी के अधिकांश कर्मचारी (programer, assistant programer) जेपीएससी कार्यालय में कार्यरत हैं, जो बिहार के बक्सर जिला से ही संबंधित हैं। ऐसी परिस्थिति में उनका यहां के स्थानीय लोगों एवं परीक्षार्थियों से संबंध होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। ऐसी परिस्थिति में 409 एवं 420 में शामिल रहे सुनील कुमार धवन एवं अरुण कुमार से संबंधित कंपनी को जेपीएससी जैसी संस्था में महत्वपूर्ण एवं गोपनीय कार्य आवंटित किया जाना संदेश उत्पन्न करता है।

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