झारखंड के मधु मंसूरी पद्मश्री से सम्मानित

Indian Mind Desk : गांव छोडव नहीं, जंगल छोडव नहीं… गीत से मशहूर हुए झारखंड के मधु मंसूरी हंसमुख 8 नवंबर 2021 को पदमश्री हो गए। झारखंड के लिए गर्व का विषय है। एक जमीनी लोक कलाकार का सम्मान पूरे झारखंड का सम्मान है। आजादी के बाद देखें तो झारखंड की झोली में जितने भी पद्म पुरस्कार आए हैं, उनके सर्वाधिक छऊ से जुड़े कलाकार-गुरु शामिल रहे हैं। पर, इधर, डॉ रामदयाल मुंडा के बाद स्थिति बदली है और इतर क्षेत्र के लोगों को भी मिलना शुरू हुआ है। यह सुखद है। इसके पूर्व लोककलाकार मुकुंद नायक को मिला। यह दूसरे ऐसे कलाकार हैं, जिन्हें इस पुरस्कार से नवाजा गया है।

मधु मंसूरी इसके हकदार भी हैं। उनका जीवन संघर्षों का साक्षी है। चार सितंबर 1948 को रांची के सिमलिया में जन्में मधु मंसूरी को मां का सुख महज 18 माह ही मिल सका। पिता अब्दुल रहमान ने ही माता की भी भूमिका निभाई। स्कूल में एक मंत्री आए थे तो उनके स्वागत में एक गीत गा दिया और फिर निश्शुल्क शिक्षा की व्यवस्था हो गई। नौवीं तक जाते-जाते विवाह बंधन में बंध गए और 10वीं तक तो घर गृहस्थी आबाद हो गई। पर, न गायन छूटा न गीत लिखना। वे जितना बेहतर गीत लिखते हैं, उतनी ही मधुर आवाज में गाते हैं। चेहरे पर एक सौम्य हंसी हमेशा तैरती रहती है। शायद, इसलिए लोग उन्हें हंसमुख नाम दे दिए हों। वे लोक से जुड़े थे, यह जुड़ाव आज भी है। इसलिए, वे गांव छोड़ब नाही जैसा अमर गीत लिख पाते हैं, जिसमें आदिवासी-मूलवासियों का पोर-पोर दर्द समाया हुआ है। यह गीत आज छोटानागपुर ही नहीं, पड़ोस के बंगाल, छत्तीसगढ़, ओडिशा से लेकर सुदूर असम और अंडमान निकोबार तक पहुंच चुका है। फिल्मी गीतों से स्वर साधने वाले मंसूरी अपनी भाषा नागपुरी में गाने लगे और इसी से उनकी मौलिक पहचान भी बनी। अपनी मातृभाषा का तासीर ऐसा ही कुछ होता है। मां का साथ नहीं मिला, लेकिन मातृभाषा ने उन्हें जीवन दिया, प्रचार दिया, पहचान दी और लोकप्रिय बनाया।

मंधु मंसूरी केवल गायक नहीं हैं। झारखंड आंदोलन के एक पहरुआ भी हैं। मंचों से उनके गीत लोगों में जोश भरते थे। सिर्फ नेताओं के कारण झारखंड अलग नहीं बना। ऐसे गायकों, लेखकों, पत्रकारों की भी भूमिका रही, जो अपने-अपने ढंग से आंदोलन को धार दे रहे थे, लोगों को जागरूक कर रहे थे। ऐसे लोग अक्सर गुमनामी में खो जाते हैं। इनके दाय को पहचानने और सम्मान देने की जरूरत तो सरकार की होती है। आज इस पुरस्कार से बेशक, रामदयाल मुंडा, गिरिधारी राम गौंझू और नईम मिरदाहा को बेहद खुशी होगी। वे आकाश से ही अपना बधाई संदेश दे रहे होंंगे और मधु मंसूरी जब आकाश की ओर ताकते होंगे, तो जरूर उनकी आंखों के कोर भीग जाते होंगे। आज खुशी का मौका है। झारखंड के दूसरे लोगों को भी, जिन्हें आज और कल मिलेगा, उन सबको बधाई।

वरिष्ठ पत्रकार संजय कृष्ण के फेसबुक वॉल से।

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