‘स्वयं है मनुष्य अपना दुश्मन’ आत्मदर्शन पुस्तक का विमोचन
पुस्तक के लेखक हैं दशरथ सिंह, संपादन किया है सुनील मंथन शर्मा ने
गिरिडीह : जन रूपांतरण समिति ताराटांड़ कार्यालय में संस्था की ओर से प्रकाशित व लेखक दशरथ सिंह लिखित आत्मदर्शन पुस्तक ‘स्वयं है मनुष्य अपना दुश्मन’ का रविवार को विमोचन किया गया। मुख्य अतिथि गांडेय के पूर्व विधायक लक्ष्मण स्वर्णकार, विशिष्ट अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार राजेश पाठक, लेखक दशरथ सिंह, पुस्तक संपादक सुनील मंथन शर्मा, पूर्व मुखिया जागेश्वर पंडित, साहित्य प्रेमी विनोद शर्मा व शिक्षक जगरनाथ पंडित ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित करने के बाद पुस्तक का विमोचन किया।
इसके पहले मुख्य अतिथि लक्ष्मण स्वर्णकार का मोहम्मद सत्तार, विशिष्ट अतिथि राजेश पाठक का जगरनाथ पंडित, लेखक दशरथ सिंह का विनोद बिहारी, पुस्तक संपादक सुनील मंथन शर्मा का राजू साव, पूर्व मुखिया जागेश्वर पंडित का मंजू देवी, विनोद शर्मा का राजन सिंह ने बुके देकर स्वागत किया।
दुनिया में धर्म या मजहब के नाम पर विवाद नहीं होना चाहिए : दशरथ सिंह
सबसे पहले लेखक दशरथ सिंह ने संस्था के उद्देश्य से अवगत कराते हुए कहा कि दुनिया में धर्म या मजहब के नाम पर विवाद नहीं होना चाहिए, बल्कि इन्हें समझने की जरूरत है। क्योंकि, सभी आत्मज्ञानियों का एक ही उद्देश्य था, समाज को चिंता से मुक्त करना। एक ऐसी मनुष्यता का जन्म हो जहां जीवन सहज हो, सुंदर हो, विवाद रहित हो।
इसके लिए नबी या बुद्ध पुरुष को नबी या बुद्ध पुरुष की बातों का खंडन करना पड़ा, क्योंकि समाज ने बुद्ध पुरुष या नबी के उद्देश्य को न पकड़कर बुद्ध पुरुष या नबी की बातों को पकड़ लिया, जिससे समाज में विकृति फैल गई। यही कारण है कि बुद्ध पुरुष पहले के बुद्ध पुरुषों द्वारा की हुई बातों को खंडन किया ताकि जन समाज उस आसक्ति से छुटकारा पा सके। क्योंकि, आसक्ति से छुटकारा ही जीवन को सहज करना है। चिंता से मुक्त करना है। समाज को बुद्ध पुरुषों की बातों में अंतर दिखाई पड़ सकता है, परंतु उद्देश्य में नहीं। अतः समाज को धर्म के नाम पर विभाजित नहीं होना चाहिए तथा शास्त्रों का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि व्यक्ति आत्मस्वरूप है, चेतना स्वरूप है, रूप स्वरूप है और यही जीवन का मूल आधार है। फिर भी आदमी इस बात को भूल करके वह अपना परिवार को आधार समझता है। अपना धन संपत्ति को आधार समझता है। पद-प्रतिष्ठा को आधार समझता है। अपने ज्ञान को आधार समझता है। यही कारण है कि आज समाज में चीजों के प्रति इतना संघर्ष है और व्यक्ति इसे बहुत मजबूत तरीके से पकड़ के रखना चाहता है ताकि वह कभी छूटे नहीं। लेखक ने कहा कि यदि संसार इन चीजों को नहीं छीन सकता है तो मृत्यु जरूर छीन लेगी। अतः आप अपनी आत्मा में स्थित रहें यही आपका संगी-साथी है। यही समस्त भूतों में विराजमान है। यही ईश्वर, अल्लाह, सत्य, सनातन आदि नामों से जाने जाते हैं, जिसका कभी नाश नहीं होता है।
स्वयं को पहचान लें तो मनुष्यता का जन्म जरूर होगा : लक्ष्मण
मुख्य अतिथि लक्ष्मण स्वर्णकार ने कहा कि मनुष्य यदि स्वयं को पहचान ले तो उनके अंदर मनुष्यता का जन्म जरूर होगा और यदि मनुष्यता का जन्म हो गया तो समझ लीजिए वह संसार का प्रिय हो जाएगा। उसे संसार प्रिय लगने लगेगा।
धर्म-अधर्म को समझना हो तो पुस्तक को पढ़ें : राजेश पाठक
साहित्यकार राजेश पाठक ने कहा कि धर्म क्या है अधर्म क्या है, इसे समझना हो तो पुस्तक को पढ़ना चाहिए। श्री पाठक ने इसी दौरान ‘घर न चाहिए न कोई द्वार चाहिए… ‘ गाकर सभी को मन्त्रमुग्ध कर दिया।
आत्ममंथन करें सही का ज्ञान हो जाएगा : सुनील मंथन
पुस्तक संपादक सुनील मंथन शर्मा ने कहा कि इस पुस्तक में दशरथ सिंह ने अपने आत्मदर्शन को पिरोया है। अधर्मियों को उनकी बातें कड़वी लग सकती है, लेकिन आत्ममंथन करने पर उन्हें सही का ज्ञान हो जाएगा।
पूर्व मुखिया जागेश्वर पंडित, मुखिया यशोदा देवी, साहित्यप्रेमी विनोद शर्मा, शिक्षक जगरनाथ पंडित, सुखदेव राणा ने पुस्तक व लेखक की प्रशंसा करते हुए सभी से पुस्तक पढ़ने की अपील की। मंच संचालन मनोज भारती ने किया।
मौके पर संस्था के सदस्य विनोद बिहारी, अभिमन्यु राणा, राजन सिंह, प्रवीण सिंह सहित मंजू देवी, राजू साव, रामचंद्र विश्वकर्मा, मोहम्मद सत्तार, मनोज जी, जगदीश चंद्र, दशरथ पंडित, छक्कू साव, सुरेंद्र यादव, उमाशंकर पंडित, राजकुमार जी, लक्ष्मी देवी, श्याम सिंह के अलावा दर्जनों लोग उपस्थित थे।