झारखंड के देवघर को कहते हैं देवताओं का घर- ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ धाम

झारखंड के देवघर को कहते हैं देवताओं का घर- ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ धाम

झारखंड के देवघर को कहते हैं देवताओं का घर, क्योंकि देवघर में देशभर के द्वादष ज्योतिर्लिंगों में से एक ज्योतिर्लिंग बाबा श्री वैद्यनाथ जी (Baba Baidyanath Dham Temple – Deoghar) हैं। यहां देवघर (Deoghar) नगरी में भक्ति की धारा सालोंभर बहती है. धार्मिक पर्यटन के लिहाज से यह स्थान देश-विदेश में प्रसिद्ध है। देवघर का वैद्यनाथ मंदिर द्वादश ज्योतिर्लिंगों में एक पुराणकालीन मंदिर है. पवित्र तीर्थ होने के कारण लोग इसे वैद्यनाथ या बैद्यनाथ धाम भी कहते हैं. जहां यह मंदिर स्थित है, उस स्थान को ‘देवघर’ अर्थात देवताओं का घर कहते हैं. वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग स्थित होने के कारण इस स्थान को देवघर नाम मिला है. यह ज्योतिर्लिंग एक सिद्धपीठ भी है. यहाँ आने वालों की सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. इस कारण इस लिंग को मनोकामना लिंग भी कहा जाता है. इसीलिए यहाँ आने वाले देश-विदेश के लोग इस झारखंड के देवघर को कहते हैं देवताओं का घर.

झारखंड राज्य के देवघर में है देवताओं का घर ज्योतिर्लिंग बाबा श्री वैद्यनाथ धामपौराणिक कथा

आइये जानते हैं कि झारखंड के देवघर को क्यों कहते हैं देवताओं का घर. मान्यता यह है कि एक बार राक्षसराज रावण ने हिमालय पर जाकर शिवजी की प्रसन्नता के लिये घोर तपस्या की और अपने सिर काट-काटकर शिवलिंग पर चढ़ाने शुरू कर दिये. एक-एक करके नौ सिर चढ़ाने के बाद दसवां सिर भी काटने को ही थे कि शिवजी प्रसन्न होकर प्रकट हो गये. उन्होंने उनके दसों सिर ज्यों-के-त्यों कर दिये और उससे वरदान मांगने को कहा. रावण ने लंका में जाकर उस लिंग को स्थापित करने के लिये, उसे ले जाने की आज्ञा मांगी. शिवजी ने अनुमति तो दे दी, पर इस चेतावनी के साथ कि यदि मार्ग में इसे पृथ्वी पर रख देगा तो वह वहीं अचल हो जाएगा. अन्तत्तोगत्वा वही हुआ. रावण शिवलिंग लेकर चला, पर मार्ग में एक चिताभूमि आने पर उसे लघुशंका निवृत्ति की आवश्यकता हुई. रावण उस लिंग को एक अहीर को थमा लघुशंका-निवृत्ति करने चला गया. इधर, उस अहीर ने शिवलिंग को बहुत अधिक भारी अनुभव कर भूमि पर रख दिया. फिर क्या था, लौटने पर रावण पूरी शक्ति लगाकर भी उसे न उखाड़ सका और निराश होकर मूर्ति पर अपना अंगूठा गड़ाकर लंका को चला गया.
इधर, ब्रह्मा, विष्णु आदि देवताओं ने आकर उस शिवलिंग की पूजा की. शिवजी का दर्शन होते ही सभी देवी देवताओं ने शिवलिंग की वहीं उसी स्थान पर प्रतिस्थापना कर दी और शिव-स्तुति करते हुए वापस स्वर्ग को चले गये. जनश्रुति व लोक-मान्यता के अनुसार यह बैद्यनाथ-ज्योतिर्लिंग मनोवांछित फल देने वाला है.

झारखंड राज्य के देवघर में है देवताओं का घर ज्योतिर्लिंग बाबा श्री वैद्यनाथ धाम
देवघर में ज्योतिर्लिंग बाबा श्री वैद्यनाथ धाम जी.

शिवपुराण की कोटिरूद्र संहिता में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को चिताभूमि में बताया गया है

ज्योतिर्लिंग पर शोध कर चुके और श्रीश्री वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग वांड्मय के लेखक मोहनानंद मिश्र के अनुसार देवघर में स्थित वैद्यनाथ मंदिर ज्योतिर्लिंगों में शामिल हैं. शिवपुराण की कोटिरूद्र संहिता में ज्योतिर्लिंगों का वर्णन है. इसमें वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को चिताभूमि में बताया गया है. इस ज्योतिर्लिंग का वर्णन अन्य पुराणों में भी है.

बटेश्वर अभिलेख

9वीं सदी के बटेश्वर अभिलेख में भी वैद्यनाथ का वर्णन है. यह कहलगांव (भागलपुर) में है.इसका पुराना नाम शिलाहृद और पत्थरघट्टा भी है. 1186 ई. में बटेश्वर प्रसिद्ध तीर्थस्थल था. यहीं पर सियाना पत्थर अभिलेख में बटेश्वर, चम्पा, वैद्यनाथ, धर्मारण्य (गया), सोमतीर्थ (सोमनाथ) का वर्णन है.

आदिगुरु शंकराचार्य क्या कहते हैं

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की भौगोलिक स्थिति के संबंध में आदिगुरु शंकराचार्य ने भी इसे पूर्व-उत्तर की दिशा में अवस्थित माना है. इसमें स्पष्ट तौर पर चिताभूमि (प्रज्वलिकानिधाने) का वर्णन है.
उन्होंने कहा है- पूर्वोत्तरे प्रज्वलिकानिधाने सदा वसन्तं गिरिजासमेतम् सुरासुराराधितपादपद्यं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि.
प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान की पांडुलिपि राजस्थान के उदयपुर में प्राच्य विद्या प्रतिष्ठान में भी हस्तलिखित पांडुलिपि की प्रति सुरक्षित है. उस पांडुलिपि में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग के बारे में लिखा है. इसमें प्रज्वलिकानिधाने की जगह पुण्यगयानिधाने लिखा है. उसमें भी लिखा है- पूर्वोत्तरे पुण्यगयानिधाने, सदा वसन्तम् गिरिजासमेतम् सुरासुराराधितपादपद्यं श्रीवैद्यनाथं तमहं नमामि.
इन दोनों श्लोकों में दिशा का जो उल्लेख है उनमें पूर्व और उत्तर की ओर स्थित जगह की ही बात की गई है. केवल प्रज्वलिकानिधाने की जगह पर पुण्यगयानिधाने लिखा गया है. इन श्लोकों से भी देवघर स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की प्रमाणिकता होती है.

प्रमुख श्लोक जो देवघर को ज्योतिर्लिंग बताते हैं

कोटिरुद्रसंहिता में वर्णन: शिव महापुराण में वर्णित द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र में चिताभूमि शब्द का प्रयोग है, न कि परल्याम् का. 18 महापुराणों में से एक शिव महापुराण भी है. शिव महापुरण के कोटिरुद्रसंहिता के अध्याय एक में पेज संख्या दो में श्लोक 19 से 23 तक द्वादश ज्योतिर्लिंग का वर्णन है.
शिवमहापुराण का श्लोक: सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्। उज्जयिन्यां महाकालमोंकारे परमेश्वरम्।। केदारं हिमवत्पृष्ठे डाकिन्यां भीमशंकरम्। वाराणस्यां च विश्वेशं र्त्यम्बकं गौतमी तटे। वैद्यनाथं चिताभूमौ नागेशं दारुकावने। सेतुबंधे च रामेशं धुश्मेशं च शिवालये। द्वादशैतानि नामानि प्रातरुत्थाय यरू पठेत। सर्वपापैर्विनिर्मुक्तरू सर्वसिद्धिफलं लभेत्।।

देवघर में सावन के महीने में लगता है भक्तों का मेला

झारखंड के देवघर को देवताओं का घर कहने का एक और कारण पढिये. देवघर का शाब्दिक अर्थ है देवी-देवताओं का निवास स्थान. देवघर में बाबा भोलेनाथ का अत्यन्त पवित्र और भव्य मंदिर (Baba Baidyanath Dham Temple – Deoghar) स्थित है. हर साल सावन के महीने में श्रावण मेला लगता है, जिसमें लाखों श्रद्धालु बोल बम का जयकारा लगाते हुए बाबा भोलेनाथ के दर्शन करने आते हैं. ये सभी श्रद्धालु सुल्तानगंज से पवित्र गंगा का जल लेकर तकरीबन सौ किलोमीटर की अत्यन्त कठिन पैदल यात्रा कर बाबा को जल चढाते हैं.

बैद्यनाथ धाम की पवित्र यात्रा श्रावण मास (जुलाई-अगस्त) में शुरु होती है. सबसे पहले तीर्थ यात्री सुल्तानगंज में एकत्र होते हैं, जहां वे अपने-अपने पात्रों में पवित्र गंगाजल भरते हैं. इसके बाद वे गंगाजल को अपनी-अपनी कांवर में रखकर बैद्यनाथ धाम और बासुकीनाथ की ओर बढ़ते हैं. पवित्र जल लेकर जाते समय इस बात का ध्यान रखा जाता है कि वह पात्र जिसमें जल है, वह कहीं भी भूमि का स्पर्श ना करे. मंदिर के समीप ही एक विशाल तालाब भी स्थित है. बाबा बैद्यनाथ का मुख्य मंदिर सबसे पुराना है, जिसके आसपास अनेक अन्य मंदिर भी बने हुए हैं. बाबा भोलेनाथ का मंदिर मां पार्वती जी के मंदिर से जुड़ा हुआ है.

वैद्यनाथ धाम की यात्रा करने वाले जरूर करते हैं वासुकिनाथ का दर्शन

वासुकिनाथ अपने शिव मंदिर के लिये जाना जाता है. वैद्यनाथ मंदिर की यात्रा तब तक अधूरी मानी जाती है जब तक वासुकिनाथ में दर्शन नहीं किये जाते. यह मंदिर देवघर से 42 किलोमीटर दूर जरमुण्डी गांव के पास स्थित है. यहां पर स्थानीय कला के विभिन्न रूपों को देखा जा सकता है. इसके इतिहास का सम्बन्ध नोनीहाट के घाटवाल से जोड़ा जाता है. वासुकिनाथ मन्दिर परिसर में कई अन्य छोटे-छोटे मन्दिर भी हैं.

बैजू मंदिर

बाबा बैद्यनाथ मंदिर परिसर के पश्चिम में देवघर के मुख्य बाजार में तीन और मंदिर हैं. इन्हें बैजू मंदिर के नाम से जाना जाता है. इन मंदिरों का निर्माण बाबा बैद्यनाथ मंदिर के मुख्य पुजारी के वंशजों ने किसी जमाने में करवाया था. प्रत्येक मंदिर में भगवान शिव का लिंग स्थापित है.

बाबा वैद्यनाथ धाम में होती है पंचशूल की पूजा

भारत के 12 ज्योतिर्लिंगों में झारखंड के देवघर में स्थित वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग शामिल है. विश्व के सभी शिव मंदिरों के शीर्ष पर त्रिशूल लगा दीखता है, मगर वैद्यनाथ धाम परिसर के शिव, पार्वती, लक्ष्मी-नारायण व अन्य सभी मंदिरों के शीर्ष पर पंचशूल लगे हैं. कहा जाता है कि रावण पंचशूल से ही अपने राज्य लंका की सुरक्षा करता था. चूंकि वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग को लंका ले जाने के लिए कैलाश से रावण ही लेकर आया था, पर विधाता को कुछ और ही मंजूर था. ज्योतिर्लिंग ले जाने की शर्त्त यह थी कि बीच में इसे कहीं नहीं रखना है. मगर देव योग से रावण को लघुशंका का तीव्र वेग असहनशील हो गया और वह ज्योतिर्लिंग को भगवान के बदले हुए चरवाहे के रूप को देकर लघुशंका करने लगा. उस चरवाहे ने ज्योतिर्लिंग को जमीन पर रख दिया. इस तरह चरवाहे के नाम बैद्यनाथ पर बैद्यनाथ धाम का निर्माण हुआ.

यहां प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि से 2 दिनों पूर्व बाबा मंदिर, मां पार्वती व लक्ष्मी-नारायण के मंदिरों से पंचशूल उतारे जाते हैं. इस दौरान पंचशूल को स्पर्श करने के लिए भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है. जैसा कि नीचे के चित्र में दिखाई पड़ रहा है. बैद्यनाथ धाम परिसर में स्थित अन्य मंदिरों के शीर्ष पर स्थित पंचशूलों को महाशिवरात्रि के कुछ दिनों पूर्व ही उतार लिया जाता है. सभी पंचशूलों को नीचे लाकर महाशिवरात्रि से एक दिन पूर्व विशेष रूप से उनकी पूजा की जाती है और तब सभी पंचशूलों को मंदिरों पर यथा स्थान स्थापित कर दिया जाता है.

इस दौरान बाबा व पार्वती मंदिरों के गठबंधन को हटा दिया जाता है. महाशिवरात्रि के दिन नया गठबंधन किया जाता है. गठबंधन के लाल पवित्र कपड़े को प्राप्त करने के लिए भी भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ती है. महाशिवरात्रि के दौरान बहुत-से श्रद्धालु सुल्तानगंज से कांवर में गंगाजल भरकर 105 किलोमीटर पैदल चलकर और ‘बोल बम’ का जयघोष करते हुए बैद्यनाथ धाम पहुंचते हैं.

जेल में तैयार होता है पुष्प नाग मुकुट

झारखंड के देवघर जेल के कैदी बाबा बैद्यनाथ के श्रृंगार पूजा में चढने वाला पुष्प नाग मुकुट तैयार करते हैं. कामना लिंग के नाम से विश्वप्रसिद्ध बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग पर श्रृंगार पूजा के समय प्रतिदिन फूलों और बेलपत्र से तैयार किया हुआ पुष्प नाग मुकुट पहनाया जाता है. यह नाग मुकुट देवघर की जेल में कैदियों द्वारा तैयार किया जाता है. इस पुरानी परंपरा का निर्वहन आज भी किया जा रहा है. यह पुरानी परंपरा है. कहा जाता है कि सालों पहले एक अंग्रेज जेलर था, जिसके पुत्र की अचानक तबियत बहुत खराब हो गई. उसकी स्थिति बिगड़ते देख लोगों ने जेलर को बाबा के मंदिर में पुष्प नाग मुकुट चढ़ाने की सलाह दी. जेलर ने लोगों के कहे अनुसार ऐसा ही किया और उनका पुत्र ठीक हो गया. तभी से यहां यह परंपरा बन गई.
इसके लिए जेल में भी पूरी शुद्धता और स्वच्छता से व्यवस्था की जाती है. जेल के अंदर इस मुकुट को तैयार करने के एक विशेष कक्ष हैं, जिसे लोग बाबा कक्ष कहते हैं. यहां पर एक शिवालय भी है. यहां मुकुट बनाने के लिए कैदियों की दिलचस्पी देखते बनती है. इस कारण मुकुट बनाने के लिए कैदियों को समूहों में बांट दिया जाता है. प्रतिदिन कैदियों को बाहर से फूल और बेलपत्र उपलब्ध करा दिया जाता है. कैदी उपवास रखकर बाबा कक्ष में नाग मुकुट का निर्माण करते हैं और वहां स्थित शिवालय में रख पूजा-अर्चना की जाती है. शाम को यह मुकुट जेल से बाहर निकाला जाता है और फिर जेल के बाहर बने शिवालय में मुकुट की पूजा होती है. इसके बाद कोई जेलकर्मी इस नाग मुकुट को कंधे पर उठाकर बम भोले, बम भोले बोलता हुआ इसे बाबा के मंदिर तक पहुंचाता है. कैदी भी इस कार्य को कर खुश होते हैं. शिवरात्रि को छोड़कर वर्ष के सभी दिन श्रृंगार पूजा के समय पुष्प नाग मुकुट सजाया जाता है, क्योंकि शिवरात्रि के दिन बाबा बैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग की आठो प्रहर में विशेष पूजा होती है.

शिव और पति प्रेम की अनूठी मिसाल कृष्णा बम

बाबाधाम की चर्चा हो रही हो और कृष्णा बम की चर्चा न हो ऐसा हो नहीं सकता. हर साल श्रावण के मेल में कृष्णा बम की चर्चा होती है. चर्चा होने का कारण है कि कृष्णा बम 61 वर्ष की हैं और पिछले 34 वर्षों से सावन में प्रत्येक रविवार को सुल्तानगंज से पदयात्रा कर सोमवार को शिव के दरबार में पहुंचती हैं. बिहार की मुजफ्फरपुर की रहने वाली कृष्णा रानी जो एक शिक्षिका हैं, अब ‘मां कृष्णा बम’ बन गई हैं. उन्हें देखने और उनसे आशीर्वाद लेने के लिए रास्ते में हजारों लोग पंक्तिबद्ध खड़े रहते हैं. सावन के प्रत्येक सोमवार को कृष्णा ‘डाक बम’ के रूप में देवघर पहुंचती हैं और बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करती हैं.

45 को साहित्योदय शक्ति सम्मान 2021

वैशाली के प्रतापगढ़ में जन्मी कृष्णा रानी कहती हैं कि विवाह के बाद उनके पति नंदकिशोर पांडेय कालाजार से पीड़ित हो गए थे. दिनोंदिन उनकी हालत खराब होती जा रही थी. तब उन्होंने संकल्प लिया कि पति के ठीक होने पर वह कांवर लेकर हर साल सावन में बाबा बैद्यनाथ का जलाभिषेक करेंगी. वह कहती हैं, ‘अगर भगवान के प्रति समर्पण की भावना हो तो खुद भक्त में शक्ति आ जाती है. इसके लिए कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती. मैं खुद को भगवान शिव के हवाले कर चुकी हूं और आज जो भी कर रही हूं, वह भगवान की कृपा से. मुझे मेरे पति और पूरे परिवार का सहयोग मिलता है. पति के ठीक होने और शिव के प्रति श्रद्धा होने की वजह से ही 34 वर्षों से लगातार श्रावण के सोमवार को बाबा बैद्यनाथ पर जल अर्पण करती हंू.’

बाबा वैधनाथ धाम मंदिर

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