‘जेपीएससी में कब तक चलता रहेगा मेधा के साथ क्रूर और असह्य मजाक’

राजेश पाठक

पृथक झारखंड राज्य निर्माण के तुरन्त बाद ही झारखंड लोक सेवा आयोग का इस राज्य में गठन हुआ। 18 वर्षाें में कुल मिलाकर 06 राज्य सिविल सेवाओं के अंतिम परिणाम आयोग द्वारा घोषित एवं तदनुसार नियुक्ति हेतु पदाधिकारियों के नामों की अनुशंसा की गई है, जबकि पांचवीं और छठी सिविल सेवा परीक्षा भी राजनीति, कूटनीति एवं अन्य दुष्कर नीतियों का शिकार हो चुकी है। अगर हम पूर्व के चार सिविल सेवाओं का मूल्यांकन करते हैं तो पाते हैं कि सभी परीक्षाएं विवादों के घेरे में रहीं है। किसी में निगरानी तो किसी में सीबीआई द्वारा जांच चल रही है। न्यूज चैनलों एवं अखबारो में सीबीआई द्वारा जो खुलासे किये गये हैं वे चौकाने वाले हैं। द्वितीय सिविल सेवा में वैसे परीक्षार्थियों को भी पूरे-पूरे अंक प्रदान किये गये हैं जिन्होंने विषय-वस्तु से इतर जाकर सवालों के जवाब दिये। उदाहरण के लिए, गाय पर लेख लिख देने से ( जबकि यह सवाल ही नहीं पूछा गया हो ) पूरे अंक छात्रों को दिये गये और वे सफल भी घोषित हुए। इतना ही नहीं किसी परीक्षार्थी ने दो से तीन पन्नों में फिल्मी गाने लिखें और उन्हे अच्छे अंक दिये गये और वे सफल भी घोषित किये गये। यह भारतीय संविधान के अनुच्छेद – 14 (समानता का अधिकार) का घोर उल्लंघन नहीं तो और क्या है? यह अवसर की समानता का उल्लघन नहीं तो और क्या है? ग्रामीण परिवेश के उन छात्रों के साथ भी यह घोर अन्याय नहीं तो और क्या है, जिसने अपने पुरखों की सम्पत्ति गिरवी रख कर इस आशा और विश्वास के साथ घर से दूर जा कर सिविल सेवा की परीक्षा में जुटा रहा कि एक दिन उसकी मेहनत रंग लायेगी और वह कामयाब होकर घर लौटेगा और फिर समाज, राज्य और देश की आम जनता की संवेदना से जुड़कर राज्य प्रशासन की बागडोर संभालेगा और एक विकसित राज्य की संकल्पना को साकार कर पायेगा ।
मेधा के साथ ऐसा क्रूर और असह्य मजाक कब तक चलता रहेगा? सी.बी.आई. बार-बार यह कहते आई है कि झारखंड लोक सेवा आयोग उन्हें जांच में आवश्यक सहयोग प्रदान नहीं कर रहा है फिर भी प्रशासनिक संवेदना झंकृत क्यों नहीं हो पा रही है। कारण स्पष्ट है। इन परीक्षाओं के माध्यम से आयोग द्वारा सभी दलों एवं उनके प्रभावशाली व्यक्तियों को उपकृत किया गया। भाई- भतीजावाद, जाति एवं क्षेत्र के प्रभाव में आकर नौकरियां रेबडियों की तरह बांटी गईं एवं एक ईमानदार एवं मेधा से परिपूर्ण व्यक्ति सिस्टम का शिकार हो अपने भाग्य को ही कोसता रहा। आज राज्य प्रशासनिक सेवा संवर्ग के पदाधिकारियों की प्रभावशीलता में कमी आई है। उनमें संवेदनशीलता का अभाव बरबस देखा जा सकता है। यह सब कलंकित हो चुकी भर्ती प्रणाली की ही देन है ।

उपर्युक्त तथ्यात्मक आधार पर महामहिम राष्ट्रपति का ध्यान तीन महत्वपूर्ण बिन्दुओं की ओर आकृष्ट किया जाना एवं उनसे सम्यक न्याय की अपेक्षा लाजिमी है: –
प्रथम: – भारतीय संविधान के अनुच्छेद 315 के अर्न्तगत अगर राज्य की विधानपालिका संयुक्त लोक सेवा आयोग गठन का प्रस्ताव पारित नहीं करती है तो वैसी स्थिति में राज्य के राज्यपाल द्वारा झारखंड लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं का दायित्व संघ लोक सेवा आयोग को देने से सम्बंधित अनुरोध सीधे राष्ट्रपति से हो ।
दूसरा:– जिस तरह शिक्षा को समवर्ती सूची का विषय बनाया गया है, उसी तरह राज्य के लोक सेवा आयोगों से सम्बंधित विषय भी समवर्ती सूची में डाले जाने पर सरकार सम्यक विचार करे ताकि वक्त आने पर केन्द्र सरकार राज्य लोक सेवा आयोग को संयुक्त लोक सेवा आयोग में बदलकर त्वरित कार्रवाई कर सके ।
तीसरा: – द्वितीय सिविल सेवा परीक्षा को रद्व करने का समुचित आधार प्राप्त है । इसके परिणाम को कानूनी दाव पेंच से मुक्त करने हेतु यथाशीघ्र परीक्षा रद्व करते हुए पुनः परीक्षा का आयोजन संयुक्त लोक सेवा आयोग के माध्यम से हो ।
ऐसा कुछ किये जाने से ही युवा असंतोष पर नियंत्रण पाया जा सकेगा एवं भ्रष्ट आचरण में लिप्त लोगों पर अंकुश लग सकेगा । यहां यह कहना आवश्यक है कि राज्य सरकार द्वारा वर्ष 2016-17 को नियुक्ति वर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया था, लेकिन हुआ कुछ नहीं । ऐसी स्थिति में सरकार को न केवल नियुक्तियों की संख्या बढानी होगी बल्कि नियुक्ति की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता पर भी पूरा ध्यान देना होगा ।

राजेश कुमार पाठक
जिला सांख्यिकी पदाधिकारी, गिरिडीह
+91 9113150917
hellomrpathak@gmail.com

 

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